क्या कह रही हैं तालाबंदी में साफ होती नदियां
८ अप्रैल २०२०दुनिया की आधी आबादी के तालाबंदी में होने की वजह से प्रकृति पर ऐसा असर पड़ रहा है जिसकी शायद सिर्फ कल्पना की गई हो. दुनिया के अलग अलग हिस्सों से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कम होने की खबरें आ रही हैं. जानवर खुले में सैर करते हुए नजर आ रहे हैं. कहीं आसमान साफ दिख रहा है तो कहीं दूर से ही पर्वतों की चोटियां नजर आ रही हैं.
भारत में कई राज्यों से उन नदियों के अचानक साफ हो जाने की खबरें आ रही हैं जिनके प्रदूषण को दूर करने के असफल प्रयास दशकों से चल रहे हैं. दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना नदी के बारे में भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कई तस्वीरें आईं जिन्हें डालने वालों ने दावा किया कि दिल्ली में जिस यमुना का पानी काला और झाग भरा हुआ करता था, उसी यमुना में आज कल साफ पानी बह रहा है.
धीरे धीरे जानकारों ने भी इस बात की पुष्टि की. विमलेन्दु झा पर्यावरण के हितों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता हैं और यमुना की सफाई के लिए कई अभियान चला चुके हैं. उन्होंने भी ट्विट्टर पर साफ हुई यमुना की तस्वीरें साझा कीं.
तो क्या वाकई ऐसा हुआ है? सरकारी एजेंसियां पूरी तरह से इसकी पुष्टि नहीं कर रही हैं, लेकिन इसकी संभावना से इनकार नहीं कर रही हैं. दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा का कहना है कि तालाबंदी के दौरान फैक्टरियों के बंद होने से नदी का औद्योगिक प्रदूषण जरूर बंद हुआ है और इससे नदी की गुणवत्ता पर जरूर सकारात्मक असर पड़ा है. लेकिन चड्ढा ने यह भी कहा कि कितना सुधार हुआ है ये जानने के लिए टेस्ट करने होंगे.
पर्यावरणविद सुभाष दत्ता का कहना है कि ऐसा माना जाता है कि यमुना के प्रदूषण में 70 प्रतिशत योगदान उसमें गिरने वाले घरेलू कचरे का होता है और 30 प्रतिशत योगदान फैक्टरियों से उसमें गिरने वाले कचरे का होता है. कानून के अनुसार फैक्टरियां अपने एफ्लुएंट्स को शुद्ध किये बिना नदी में जाने नहीं दे सकतीं. तालाबंदी की वजह से फैक्टरियां बंद हैं और इसी बीच नदी के साफ होने का मतलब है कि जब फैक्टरियां चल रही थीं तो उनके एफ्लुएंट्स शुद्ध किये बिना नदी में जा रहे थे. सुभाष दत्ता का यह भी कहना है कि इसका मतलब यह भी है कि सरकारी एजेंसियां भी निगरानी करने का काम ठीक से नहीं करतीं.
यमुना जिए अभियान के कंवेनर मनोज मिश्रा कहते हैं कि नदी के अभी साफ होने का मतलब है कि हम ने अभी तक उसके प्रदूषण के स्त्रोत को ठीक से समझा ही नहीं था. वो कहते हैं कि आज तक सारा फोकस कचरे को ट्रीट करने के प्लांट पर था लेकिन असल समस्या फैक्टरियों से निकला डिस्चार्ज है.
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) ने गंगा और कावेरी नदियों में भी आये ऐसे ही बदलाव का संज्ञान लिया है. एसएएनडीआरपी का कहना है कि इस स्थिति से सबसे बड़ा सबक यह निकल कर आया है कि देश में नदियों को साफ करने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है.
हालांकि कई लोग इन खबरों पर संदेह भी कर रहे हैं.
ऐसा लग रहा है कि इन नदियों के प्रवाह में कुछ विशेष जगहों पर ये बदलाव देखे जा रहे हैं और कहीं कहीं स्थिति ज्यों की त्यों है. लेकिन सीमित मात्रा में ही सही अगर नदियां साफ हुई हैं तो वैज्ञानिक तरीके से इसके पीछे का कारण समझना चाहिए ताकि नदियों को पूरी तरह से साफ करने के उपाय निकाले जा सकें.
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