"कोरोना का टीका लगवाओ, 750 रुपए पाओ"
११ जनवरी २०२१भोपाल के पीपल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में कोवैक्सिन नाम की कोविड-19 वैक्सीन की सुरक्षात्मकता, बीमारी से बचाव की क्षमता और गुणकारिता के मूल्यांकन के लिए तीसरे चरण का क्लिनिकल परीक्षण चल रहा है. इस वैक्सीन को भारत बायोटेक नाम की निजी कंपनी ने सरकारी संस्था आईसीएमआर के साथ मिल कर बनाया है और इसे सरकार की तरफ से तीन जनवरी को सीमित रूप से आपात इस्तेमाल की अनुमति भी दे दी गई थी.
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों ने दावा किया है कि भोपाल में कोवैक्सिन के ट्रायल में बड़ी संख्या में त्रासदी पीड़ितों को धोखे से शामिल किया गया, ट्रायल के स्थापित दिशा-निर्देशों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया गया और ट्रायल में शामिल लोगों के स्वास्थ्य के साथ लापरवाही बरती गई. भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने एक समाचार वार्ता में पत्रकारों को बताया कि ट्रायल में शामिल 1,700 लोगों में से 700 त्रासदी पीड़ित हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि इनमें से एक पीड़ित की टीके की पहली खुराक लगने के नौ दिनों के अंदर मौत हो गई. 45-वर्षीय दीपक मरावी एक आदिवासी समुदाय से थे और दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे. गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अगर इन नौ दिनों में वैक्सीन की खुराक देने के बाद अस्पताल वालों ने उनकी निगरानी की होती तो संभव है कि उनकी जान बच जाती.
लोगों को ललचा कर करवाया भर्ती!
रशीदा बी ने संघ की तरफ से मृतक के परिवार को 50 लाख रुपयों का हर्जाने दिए जाने की मांग की है. इतनी ही रकम उन सरकारी कर्मचारियों के परिवार को दी जाती है जिनकी महामारी प्रबंधन के दौरान कोविड-19 संक्रमण होने से मृत्यु हो गई हो. इतना ही नहीं, एक्टिविस्टों का दावा है कि त्रासदी पीड़ितों पर वैक्सीन का परीक्षण बिना उन्हें बताए किया जा रहा है.
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने डीडब्ल्यू को बताया कि अस्पताल ने वैक्सीन के परीक्षण के लिए लोगों को भर्ती करने के लिए यूनियन कार्बाइड की वीरान फैक्टरी के पीछे बस्तियों में जा कर वहां लोगों में "कोरोना का टीका लगवाओ, 750 रुपए पाओ" का भ्रम फैलाया.
जब लोग टीका और 750 रुपए पाने की लालसा में ट्रायल में भर्ती हो गए तो उन्हें सहमति पत्र या कंसेंट फॉर्म विस्तार से पढ़ कर सुनाया नहीं गया, कइयों को तो सहमति पत्र दिए ही नहीं गए और जिन्होंने पत्र पढ़ने के इच्छा भी जताई उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया. रचना ने बताया कि सहमति की ऑडियो-विज़ुअल रिकॉर्डिंग करना भी अनिवार्य होता है, लेकिन इस दिशा-निर्देश का भी पालन नहीं किया गया.
शिकायतों की अनदेखी
रचना ने यह भी कहा कि ट्रायल में शामिल लोगों की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है और कई लोगों की शिकायतों को अनसुना कर दिया गया है. पीड़ितों ने याद दिलाया कि इसी तरह लगभग 12 साल पहले बड़ी दवा कंपनियों ने भी त्रासदी पीड़ितों पर दवाओं के ट्रायल किए थे जिनमें 13 पीड़ितों की मौत हो गई थी.
पीड़ितों का कहना है कि उस समय भी पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला था और 13 लोगों की मौत के लिए किसी को सजा नहीं दी गई थी. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वो उसी तरह के घटनाक्रम को दोबारा होने से रोक लें. पीपल्स यूनिवर्सिटी ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है और इन्हें झूठा बताया है.
दीपक मरावी की मौत के कारणों की जांच करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी मृत्यु के दिन ही एक जांच समिति गठित की थी. समिति ने उसी दिन जांच पूरी कर उसकी रिपोर्ट भी पेश कर दी जिसमें कहा गया कि सभी दिशा-निर्देशों का पालन हुआ है.
वैक्सीन पर सवाल
लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि अभी तक सरकार या भारत बायोटेक कंपनी की तरफ से किसी ने भी दीपक के परिवार से संपर्क कर उन्हें उनकी मृत्यु के बारे में समझाने की कोशिश नहीं है. उनका यह भी कहना है कि भोपाल में जिस तरह से इस वैक्सीन के परीक्षण का काम हुआ है उससे इस पूरे परीक्षण पर इस वैक्सीन पर एक बड़ा प्रश्न-चिन्ह लगा दिया है.
कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया है कि जहां पूरे देश में वैक्सीन का परीक्षण करने वाले संस्थानों को वालंटियर भर्ती करने में मुश्किलें पेश आ रही थीं, ऐसे में पीपल्स कॉलेज ने 1,700 से भी ज्यादा प्रतिभागियों को आसानी से कैसे भर्ती करा लिया? इसके अलावा उन्होंने यह भी पूछा है कि वैक्सीन को आपात अनुमति देने के लिए जब सरकार की सब्जेक्ट एक्सपर्ट समिति ने अपनी बैठक के मिनट जारी किए, तो उन मिनटों में दीपक की मृत्यु का जिक्र क्यों नहीं था?
पीड़ितों के संगठनों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सभी तथ्य इस वैक्सीन की सुरक्षात्मकता पर ही सवाल उठाते हैं और इसलिए इन सभी तथ्यों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और वैक्सीन परीक्षण के भोपाल के पूरे डाटा को ही अलग कर निकाल देना चाहिए और परीक्षण के परिणाम की समीक्षा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
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