राहत के लिए काम आ रही है क्राउडफंडिंग
२१ अप्रैल २०२०तालाबंदी शुरू होने के दो दिन बाद ही जब लाखों प्रवासी श्रमिक हताश हो कर देश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर अपने अपने गांव लौटने को पैदल ही निकल पड़े, तब सरकार और समाज दोनों को गरीबों पर तालाबंदी के असर का अंदाजा हुआ. तब से इनकी मदद करने के लिए देश में जगह जगह आश्रय और भोजन बांटने के लिए केंद्र खोले गए और इन्हें राहत पहुंचने की कोशिशें की जाने लगीं.
ये काम सिर्फ केंद्र और राज्य सरकारें ही नहीं कर रही हैं. पूरे देश में इस अभियान में कई व्यक्ति, समूह और गैर सरकारी संगठन भी लगे हुए हैं. बल्कि सात अप्रैल को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो जानकारी दी थी उसके अनुसार उस समय तक देश में सरकारी भोजन शिविरों की संख्या सिर्फ 7,848 थी जबकि गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे भोजन शिविरों की संख्या 9,473 थी.
संगठन और आम लोग निजी स्तर पर भी बड़े पैमाने पर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. कुछ लोग मिलकर सामुदायिक रसोई चला रहे हैं जहां से रोजाना सैकड़ों लोगों के लिए भोजन बना कर उन तक पहुंचाया जा रहा है तो कुछ और समूह गरीबों में सूखा राशन, उनके बच्चों के लिए मिल्क पाउडर इत्यादि बांट रहे हैं. संसाधन जुटाने के तरीके भी अलग अलग हैं. कहीं सामर्थ्यवान लोग अपनी जेब से सारा खर्च उठा रहे हैं तो कहीं दोस्तों और परिचितों का योगदान भी काम आ रहा है.
क्राउडफंडिंग का सहारा
लेकिन संसाधन जुटाने में सबसे ज्यादा असर शायद क्राउडफंडिंग के माध्यम से हो रहा है. ये डोनेशन लेने जैसा ही है लेकिन इसका अनुपात बहुत बड़ा है. कोई अगर व्यक्तिगत स्तर पर जान पहचान के लोगों से योगदान लेकर इस तरह का अभियान चलाना चाहे तो वह जितने लोगों तक पहुंच पाएगा, क्राउडफंडिंग सेवाओं की पहुंच उस से कई गुना ज्यादा लोगों तक होती है.
मुंबई में एक्विवि समूह एक ऐसा ही अभियान चला रहा है. यह फिल्म जगत से जुड़े पांच नौजवानों का एक समूह है जिसने 500 प्रवासी श्रमिक परिवारों तक दो सप्ताह का राशन, मास्क और साबुन पहुंचाने का लक्ष्य अपने सामने रखा है. समूह के सदस्यों का अनुमान है कि इसके लिए इन्हें पांच लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी. इतनी बड़ी धनराशि जुटाने के लिए इन्होने क्राउडफंडिंग कंपनी मिलाप की मदद ली है.
एक्विवि के सदस्यों ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें लगा कि यह एक ऐसा संकट है जिसमें बड़े स्तर पर सहयोग की जरूरत पड़ेगी. मिलाप की मदद से हम अपने परिचितों के अलावा भी बड़ी संख्या में और लोगों तक पहुंच सकते हैं. इसमें लोगों के लिए भी आसानी है कि उन्हें एक ही जगह पर हमारे और हमारे अभियान के बारे में सारी जानकारी मिल सकती है. इससे वे हम पर और विश्वास कर पाएंगे".
करोड़ों की धनराशि
मिलाप की मदद से एक्विवि के इस अभियान के लिए अभी तक कुल 66 लोगों के योगदान से एक लाख 65 हजार रूपये इकठ्ठा हो गए हैं. मिलाप की वेबसाइट पर दान करते समय दान करने वाले को अपना नाम और योगदान राशि गुप्त रखने या जाहिर करने का विल्कल्प दिया जाता है. जानकारी जाहिर करने वालो के आधार पर किस किस ने कितना योगदान दिया ये वेबसाइट पर कोई भी देख सकता है.
एक्विवि के सदस्यों का कहना है कि जल्द ही उनकी अपनी वेबसाइट भी उपलब्ध हो जाएगी जहां से योगदान देने वाले उन सभी परिवारों की जानकारी देख सकेंगे और डाउनलोड भी कर सकेंगे जिन्हें उनके सहयोग से एक्विवि द्वारा मदद पहुंचाई गई है.
मिलाप के सीईओ और सह-संस्थापक मयूख चौधरी ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्होंने और दूसरे संस्थापकों ने साथ मिल कर कंपनी को 2010 में शुरू किया था और अभी तक इसके जरिए अलग अलग अभियान चलाने वाले लोग 900 करोड़ से भी ज्यादा रुपये जुटाने में सफल हुए हैं.
योगदान की सुविधा
मयूख चौधरी ने यह भी बताया कि इस समय सिर्फ कोविड-19 से ही जुड़े 1100 से भी ज्यादा अभियान मिलाप की वेबसाइट पर चल रहे हैं और इनके लिए अभी तक लगभग 75 करोड़ रुपये इकठ्ठा हो चुके हैं. अमूमन मिलाप एक अभियान सफल होने पर कुल धनराशि का पांच प्रतिशत अपने शुल्क के रूप में ले लेती है लेकिन आपदाओं और आपातकाल जैसी स्थिति में मिलाप अपना शुल्क माफ भी कर देती है. एक्विवि के अभियान से मिलाप कोई शुल्क नहीं लेगी.
क्राउडफंडिंग का फायदा वो लोग भी उठाते हैं जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं लेकिन सीधे तौर पर कोई अभियान चलाने की स्थिति में नहीं होते. ऐसे लोग मिलाप जैसी कंपनियों के जरिए अभियानों के बारे में जान कर और उनकी विश्वसनीयता के बारे में पूरी तसल्ली कर आसानी से धनराशि का योगदान कर सकते हैं और अभियान से जुड़ सकते हैं.
क्राउडफंडिंग की दुनिया में मिलाप जैसी और भी कंपनियां हैं और इस समय उन सभी के जरिए तालाबंदी की मार झेल रहे गरीब जरूरतमंद लोगों तक काफी मदद पहुंच रही है.
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