गौरक्षकों ने ले ली एक और जान
१५ जून २०२१मध्य प्रदेश के रहने वाले 25 वर्षीय बाबू भील पर तथाकथित गौरक्षकों ने तब हमला कर दिया जब वो राजस्थान से तीन बैल खरीद कर वापस अपने घर ले जा रहा था. पुलिस के बयान के मुताबिक बाबू ने राजस्थान के चित्तौरगढ़ के एक गांव में वो बैल खरीदे थे. बाबू अपने दोस्त पिंटू भील के साथ उन बैलों को एक ट्रक में लाद कर वापस ले जा रहा था तभी आधी रात के आस पास कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया और बेरहमी से पीटना शुरू किया. वो उन दोनों युवकों को लगभग एक घंटे तक लाठियों से पीटते रहे और उसके बाद पुलिस के वहां पहुंचने पर वहां से भाग गए.
पुलिस ने दोनों को अस्पताल पहुंचाया लेकिन बाबू की इलाज के दौरान ही मृत्यु हो गई. 21 वर्षीय पिंटू गंभीर रूप से घायल है और अभी अस्पताल में ही भर्ती है. पुलिस का कहना है कि प्राथमिक जांच से संकेत मिले हैं कि बैलों को खेती में इस्तेमाल के लिए ही खरीदा गया था और दोनों युवकों पर हमला करने वाले गौरक्षक थे. पुलिस ने कम से कम 19 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और 10 लोगों को हिरासत में ले लिया है. पुलिस का कहना है कि दोनों युवकों के पास बैलों की खरीद के कागज भी थे लेकिन हमलावरों ने कागजों को फाड़ दिया और उनके मोबाइल फोन भी छीन लिए.
राजस्थान और देश के और भी कई राज्यों में गौ-रक्षकों द्वारा इस तरह के कई हमले हुए हैं. अप्रैल 2017 में राजस्थान के ही अलवर में पहलु खान को भी कुछ लोगों ने इसी तरह गौ तस्करी का आरोप लगा कर पीट पीट कर मार दिया था. लेकिन पूरा जुर्म कैमरे पर रिकॉर्ड होने के बावजूद खान के हमलावरों को आज तक सजा नहीं मिल पाई है. राजस्थान ने 2019 में इस तरह पीट पीट कर मार दिए जाने के खिलाफ अलग से एक कानून भी लाया गया, लेकिन उसके बावजूद ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही हैं.
लंबित हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश
इन हत्याओं के मामले में राजस्थान अकेला राज्य नहीं है. कुछ ही दिनों पहले असम के तिनसुकिया में भी इसी तरह कुछ लोगों ने एक 28 वर्षीय व्यक्ति को मवेशी चुराने के संदेह में पीट पीट कर मार दिया था. पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार किया है. इसके पहले पिछले कुछ सालों में झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर जैसे कई राज्यों में इस तरह की हत्याएं हो चुकी हैं. 2018 में एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला की याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को इन हत्याओं की रोकथाम करने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए थे लेकिन अधिकतर राज्यों में ये अभी तक लागू नहीं हुए हैं.
इनमें इस तरह के मामलों पर तेज गति से अदालतों में सुनवाई, हर जिले में पुलिस के एक विशेष दस्ते का गठन, ज्यादा मामलों वाले इलाकों की पहचान, भीड़-हिंसा के खिलाफ रेडियो, टीवी और दूसरे मंचों पर जागरूकता कार्यक्रम जैसे कदम शामिल हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने संसद से अपील भी की थी कि वो इस तरह की हिंसा के खिलाफ एक नया कानून ले कर आए, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक ऐसी कोई पहल नहीं की गई है.