ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर रहे कंक्रीट के बढ़ते जंगल
१२ फ़रवरी २०२२पृथ्वी पर पानी के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल सीमेंट और कंक्रीट का होता है. आधुनिक शहरों के निर्माण में इसका सबसे ज्यादा योगदान है. हम जहां रहते हैं वहां आसपास मौजूद ज्यादा से ज्यादा चीजों के निर्माण में इसका इस्तेमाल होता है, चाहे वह हमारे घर की छत हो या बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए बनाया जाने वाला बांध या और कोई अन्य बुनियादी संरचना. कंक्रीट एक ऐसी चीज है जिसने दुनिया भर में निर्माण के क्षेत्र में नई क्रांति ला दी है. हमारे जीवन स्तर को बेहतर बनाया है. इन सब के बावजूद, यह ग्लोबल वार्मिंग को तेज करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है.
सीमेंट उद्योग वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 8 फीसदी के लिए जिम्मेदार है, जो उड़ान या शिपिंग से दोगुने से अधिक है. घर, सड़क, बाढ़ से बचाव के लिए बुनियादी संरचना तैयार करने जैसे कई कामों के लिए हर साल 400 करोड़ टन से अधिक सीमेंट का उत्पादन किया जाता है. धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल बढ़ने की ही संभावना है, क्योंकि गरीब देशों में भी शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है. घर और दूसरे बुनियादी ढांचों का निर्माण बढ़ रहा है.
चीन दुनिया के आधे से अधिक सीमेंट का उत्पादन करता है. अमेरिका ने 20वीं सदी में जितना सीमेंट का उत्पादन किया, चीन ने महज दो वर्षों, 2011 से 2013 में ही उतने सीमेंट का उत्पादन किया.
ब्रसेल्स में मौजूद क्लाइमेट थिंक टैंक ई3जी (E3G) में औद्योगिक प्रक्रियाओं में डीकार्बोनाइजिंग (कार्बन के इस्तेमाल को कम करना) की विशेषज्ञ जोहाना लेहने कहती हैं, "मूल चुनौती यह है कि कंक्रीट में काफी ज्यादा कार्बन का इस्तेमाल होता है. यह एक बड़ी समस्या है. इसके बावजूद, इसका ज्यादा इस्तेमाल जारी रह सकता है.”
पर्यावरण के अनुकूल कंक्रीट मौजूद क्यों नहीं है
कंक्रीट का निर्माण करना एक सामान्य प्रक्रिया है. इसके लिए, सीमेंट और पानी में महीन रेत और चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़ों को तय अनुपात में मिलाया जाता है. इन सब को एक साथ मिलाने पर, ये एक-दूसरे से पूरी तरह चिपक जाते हैं. जरूरत के मुताबिक, इन्हें कोई भी आकार दे दिया जाता है.
सीमेंट की वजह से कंक्रीट पर्यावरण के अनुकूल नहीं है. सीमेंट के उत्पादन के लिए, घूमने वाली भट्टी को 1400 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान तक गर्म किया जाता है. इसके लिए जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है. इस प्रक्रिया में चूना पत्थर और मिट्टी को मिलाया जाता है, जो एक साथ मिलकर क्लिंकर बनते हैं. यह सीमेंट का मुख्य हिस्सा होता है. चूना पत्थर को तोड़ने के लिए जो रासायनिक प्रतिक्रिया होती है उससे काफी ज्यादा मात्रा में CO2 निकलता है.
सीमेंट बनाने के लिए इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए कंक्रीट की वजह से होने वाले उत्सर्जन को खत्म करने के लिए कोई स्पष्ट तकनीक नहीं है. लेहने कहती हैं कि उदाहरण के लिए, बिजली या परिवहन क्षेत्र के विपरित, सीमेंट बनाने की मूल तकनीक ही सबसे बड़ी चुनौती है. कंक्रीट उद्योग में विंड टरबाइन या इलेक्ट्रिक कार जैसी तकनीक की कमी है.
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सीमेंट उद्योग को साफ-सुथरा कैसे बनाया जाए
ग्लोबल सीमेंट एंड कंक्रीट एसोसिएशन (जीसीसीए) एक ऐसा समूह है जिसके सदस्य चीन के बाहर 80 फीसदी सीमेंट का उत्पादन करते हैं. इस समूह में कई चीनी और भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं. अक्टूबर 2021 में इस समूह ने 2050 तक उद्योग को पूरी तरह से डीकार्बोनाइज करने के लिए रोडमैप जारी किया है. इनका लक्ष्य 2050 तक इस उद्योग को कार्बन न्यूट्रल बनाना है.
इसके तहत, सीमेंट और कंक्रीट के उत्पादन की प्रक्रिया में बदलाव किया जाएगा. इसमें जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल किए बिना भट्टी को गर्म करना, कुछ क्लिंकर को स्टील और कोयला संयंत्रों के कचरे से बदलना जैसे बदलाव भी शामिल हैं.
इमारतों के डिजाइन में बदलाव करके एक-चौथाई उत्सर्जन को कम किया जा सकता है और इन इमारतों को लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, ये ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिन पर उद्योग का नियंत्रण काफी कम होता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो आर्किटेक्ट और इंजीनियर पुरानी इमारतों को गिराने की जगह उन्हें फिर से रहने लायक बना सकते हैं. साथ ही, नए इमारतों को इस तरह डिजाइन कर सकते हैं कि वे ज्यादा लंबे समय तक चलें.
उत्सर्जन को कम करने का एक उपाय यह भी है कि कार्बन को छोड़े जाने के बाद उन्हें फिर से कैप्चर कर लिया जाए.
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कार्बन को कैप्चर करने का तकनीक
कार्बन को कैप्चर करने का तकनीक मौजूद है, लेकिन यह काफी महंगी है. साथ ही, बड़े पैमाने पर इसका परीक्षण भी नहीं किया गया है. सीमेंट उद्योग में इसका विकास अभी भी शुरुआती चरण में है. इसका मतलब यह है कि उद्योग की योजनाएं ऐसे तकनीकों पर आधारित हैं जो अभी तक समस्याओं को दूर करने के लिए तैयार नहीं हैं.
जीसीसीए के सीईओ थॉमस गिलोट ने नीति निर्माताओं और निवेशकों से आवश्यक बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए उद्योग के साथ तालमेल बैठाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा, "अगले 10 वर्षों में हमें इस तकनीक को कारगर बनाना होगा. हमें इसके लिए काफी काम करने की जरूरत है.”
जीसीसीए 2030 तक 10 सीमेंट संयंत्रों में औद्योगिक पैमाने पर कार्बन कैप्चर तकनीक का इस्तेमाल करना चाहता है. इनमें से पहला नॉर्वे में जर्मन कंक्रीट कंपनी हाइडलबर्ग बना रही है. उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से संयंत्र में उत्सर्जित होने वाले CO2 के आधे हिस्से को कैप्चर कर उसे स्थायी तौर पर संग्रहित कर दिया जाएगा. जीसीसीए रोडमैप में दुनिया भर के सीमेंट संयंत्रों के लिए 29 कार्बन कैप्चर प्रोजेक्ट की सूची शामिल है.
विश्लेषकों ने 2050 के लक्ष्यों के लिए तैयार किए गए रोडमैप की प्रशंसा की है. हालांकि, उन्होंने अगले कुछ वर्षों में उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई स्पष्ट योजना ना होने को लेकर आलोचना भी की है. गिलोट ने कहा कि जीसीसीए के सदस्यों ने विस्तृत रूप से यह जानकारी नहीं दी है कि वे इस दशक में उत्सर्जन में किस तरह कटौती करेंगे. वे बाद में इस पर जानकारी देंगे.
उन्होंने कहा, "हम अपने वादों को पूरी तरह हकीकत में बदलना चाहते हैं. हमें वैश्विक दृष्टिकोण को स्थानीय जरूरतों में बदलना है.”
भविष्य के समाधान
ये छोटे पैमाने पर लागू किए गए कुछ ऐसे समाधान हैं जो वादे को पूरा करने के शुरुआती संकेत दिखाते हैं. स्वीडन में, ऊर्जा कंपनी वेटनफॉल के एक अध्ययन से पता चला है कि सीमेंट बनाने के लिए जीवाश्म ईंधन की जगह तकनीकी तौर पर बिजली का इस्तेमाल किया जा सकता है. कई दूसरे शोधकर्ता इस बात की खोज कर रहे हैं कि किस तरह से CO2 को कंक्रीट के छोटे टुकड़ों में इंजेक्ट किया जा सकता है और इसका फिर से इस्तेमाल हो सकता है. फ्रांस में एक कंपनी ने साइट पर कैप्चर किए गए CO2 का उपयोग करके सीमेंट के धूल को इस्तेमाल के लायक बना दिया.
कार्बन को कैप्चर करने वाली तकनीक से जुड़ी कंपनी कार्बन-8 सिस्टम्स के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी मार्टन वैन रून ने कहा, "सीमेंट बनाने वाली कंपनियों के लिए कार्बन को कैप्चर करने की लागत अभी भी एक बड़ी चुनौती है. कचरे को लैंडफिल में फेंकने की जगह उसे इस्तेमाल के लायक वस्तु बनाकर, हम खर्च को कम करने की कोशिश करते हैं. इससे हमें अपनी साइट पर नई तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए खर्च करने में मदद मिलती है.”
निर्माण के क्षेत्र में लकड़ी का इस्तेमाल करके भी कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है. हालांकि, कंक्रीट की जगह बड़े पैमाने पर लकड़ी का इस्तेमाल करने से जंगलों पर दबाव बढ़ जाएगा.
पुर्तगाल के लिस्बन यूनिवर्सिटी में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जॉर्ज डी ब्रिटो ने ग्रीन कंक्रीट के विकल्पों का आकलन करते हुए एक अध्ययन प्रकाशित किया है. वह कहते हैं, "ज्यादातर लोग सोचते हैं कि कंक्रीट का पर्यावरण पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है और वे सही भी हैं. लेकिन इसकी वजह है कि यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु है.”