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जर्मनी में धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की निगरानी को मंजूरी

९ मार्च २०२२

जर्मनी की एक अदालत ने धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को घरेलू खुफिया एजेंसी के लिए चरमपंथ के मामले में संदिग्ध मान कर निगरानी करने की मंजूरी दे दी है. इस मामले में धुर दक्षिणपंथी दल की याचिका खारिज कर दी गई है.

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एएफडी आप्रवासियों का विरोध करती है
एएफडी आप्रवासियों का विरोध करती हैतस्वीर: Kay Nietfeld/picture alliance/dpa

इस फैसले का मतलब है कि जर्मन सरकार की खुफिया एजेंसियां लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में एएफडी को संदिग्ध मान कर उसकी गतिविधियों पर निगरानी रख सकेंगी. एएफडी के द विंग और युवा अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड यानी एएफडी के खिलाफ जाने वाला यह फैसला कोलोन की प्रशासनिक अदालत ने दिया है. अदालत का मानना है कि पार्टी में गैरसंवैधानिक महत्वाकांक्षा होने के पर्याप्त संकेत मौजूद हैं. अदालत को यह भी पता चला है कि पार्टी का द विंग के नाम से जाना जाने वाला सबसे कठोर दक्षिणपंथी गुट भले ही खत्म कर दिया गया है, लेकिन इससे जुड़े अहम लोग अब भी पार्टी में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

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संगठन की नीति जर्मनी की जातीय एकता की रक्षा करना और विदेशियों के इससे बाहर रखना है. यह विचार जर्मनी के लोकतांत्रिक संविधान से उलट है. अदालत का कहना है कि उसने पार्टी में विदेशियों के खिलाफ विरोध देखा है. इससे पहले दो मौकों पर अदालत ने खुफिया निगरानी की मंजूरी यह कह कर खारिज कर दी थी कि इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखलंदाजी होगी. एक साल पहले अदालत ने पार्टी को निगरानी में रखे जाने के सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी. तब अंगेला मैर्केल जर्मनी की चांसलर थीं और सरकार के लिए यह बड़ी उलझन का विषय बन गया था.

कोरोना की पाबंदियों के खिलाफ एएफडी ने बढ़ चढ़ कर प्रदर्शन किए हैं
कोरोना की पाबंदियों के खिलाफ एएफडी ने बढ़ चढ़ कर प्रदर्शन किए हैं तस्वीर: Christoph Schmidt/dpa/picture alliance

एएफडी का उभार

पांच महीने पहले हुए जर्मनी के राष्ट्रीय चुनावों में एएफडी के वोट कुछ कम हुए, लेकिन यह अब भी 10.3 फीसदी के स्तर पर बना हुआ है. पिछले चुनाव में यह 12.6 फीसदी था. एएफडी का गठन 2013 में हुआ था और बीते सालों में इसका रुझान ज्यादा से ज्यादा दक्षिणपंथ की ओर हुआ है. शुरुआत में यह मुख्य रूप से यूरोजोन के सदस्यों को दिए जाने वाले बेलआउट पैकेज के विरोध पर केंद्रित था. बाद में इसने चांसलर अंगेला मैर्केल के 2015 में शरणार्थियों की बड़ी संख्या को जर्मनी में आने देने के विरोध को अपना मुद्दा बना लिया.

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इस मुद्दे ने एएफडी को जर्मनी में एक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित कर दिया. 2017 के चुनाव में यह पार्टी संसद के अंदर पहुंच गई. हाल ही में एएफडी ने कोरोना की महामारी के चलते लगने वाली पाबंदियों के विरोध को अपना मुद्दा बनाया है. वह ऐसे प्रदर्शनों का आयोजन कर रही है और लोगों को इन पाबंदियों का विरोध करने के लिए एकजुट कर रही है.

इसी साल जनवरी में एएफडी के प्रमुख नेता योएर्ग मॉयथेन ने पार्टी के बढ़ते कट्टरपंथ की शिकायत करते हुए इससे अलग होने का फैसला किया. उन्हें पार्टी के मुट्ठीभर उदार लोगों में एक माना जाता है. एएफडी के नेता टिनो च्रुपाला का कहना है कि वो मंगलवार को आए अदालत के फैसले सै हैरान हैं और इसके खिलाफ अपील करने पर विचार कर रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि वो इस फैसले से असहमत हैं और जर्मनी के केंद्र और राज्य की राजनीति में वैकल्पिक राजनीतिक विचारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे. 

एनआर/एसएम(एपी, एएफपी)

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