डूब जाएगा भारत का टेलीकॉम सेक्टर?
२५ अक्टूबर २०१९भारत का टेलीकॉम क्षेत्र व्यापक बदलाव के दौर से गुजर रहा है. कुछ ही सालों में इस क्षेत्र में सेवाएं देने वाली कंपनियों की संख्या 15 से तीन पर आ गई. इन तीन में भी एक की आर्थिक हालत कमजोर है और बाकी दो के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है.
जिस विशेष शुल्क को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है, उसका विवाद 2003 से चला आ रहा है. उस वक्त इन कंपनियों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित एक नई प्रणाली को अपना लिया था. इसके तहत कंपनियां अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा सरकार को देने के लिए राजी हो गई थीं. विवाद तब पैदा हुआ, जब भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने कंपनियों की कमाई की परिभाषा किया.
सरकार ने कहा कि इस कमाई का मतलब होगा कंपनियों की कमाई गई हर तरह की धनराशि, जिसमें दूरसंचार से अलावा उनके दूसरे भी कमाई के साधन शामिल होंगे. इसे अडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) कहा गया और इसमें हैंडसेट की बिक्री, किराया, लाभांश, ब्याज से आय और रद्दी की बिक्री से हुई आय जैसे कई आय के स्रोतों को शामिल किया गया.
एजीआर के आधार पर सरकार को मिलने वाला लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने का शुल्क निर्धारित होना था. एजीआर कम होगी तो कंपनियों को सरकार को कम पैसे देने होंगे. इसीलिए कंपनियों ने एजीआर की इस परिभाषा के खिलाफ ट्राइब्यूनलों का दरवाजा खटखटाया. उनकी मांग थी कि उसकी परिभाषा मूलभूत दूरसंचार सेवाओं तक ही सीमित रखी जाए.
2015 में एक दूरसंचार ट्राइब्यूनल ने फैसला दिया कि एजीआर की परिभाषा में मूल दूरसंचार सेवाओं के अलावा सिर्फ कुछ और आय के साधनों को शामिल किया. कंपनियों और दूरसंचार विभाग, दोनों ने ही इस फैसले का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
दूरसंचार विभाग ने एजीआर की जो परिभाषा दी थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे सही ठहराया है और कहा है कि इसमें दूरसंचार सेवाओं के अलावा वे सभी सेवाएं आएंगी जो कंपनियों के लिए कमाई का साधन हैं.
एजीआर की इस परिभाषा के तहत सभी दूरसंचार कंपनियों को कुल मिला कर 1,000 अरब रुपये से भी ज्यादा देने होंगे, जिनमे शामिल है 92,641 करोड़ रुपये का लाइसेंस शुल्क और 40,970 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने का शुल्क.
जिन कंपनियों पर ये राशि बकाया है उनमे से आज सिर्फ तीन बाजार में हैं एयरटेल, आइडिया-वोडाफोन और रिलायंस जियो. बाकी या तो दूरसंचार क्षेत्र से निकल चुकी हैं या दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया में हैं. जो तीन कंपनियां अभी चल रही हैं उनमें से सबसे ज्यादा रकम आइडिया-वोडाफोन पर बकाया है जिसकी आर्थिक हालत तीनों में से सबसे खराब है और सबसे काम राशि जियो पर बकाया है जिसकी आर्थिक हालत सबसे अच्छी है.
आइडिया-वोडाफोन को अगर इतना पैसा देना पड़ा तो कंपनी दिवालिए की तरफ बढ़ जाएगी. शायद इसलिए कंपनी ने कहा है कि वो इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में विचार कर रही है. एयरटेल ने कहा कि उसे इस फैसले से निराशा हुई है और ये फैसला पूरे दूरसंचार क्षेत्र की क्षमता को कमजोर करेगा.
कुछ ऐसी भी खबरें हैं जिनसे खुद सरकार के पशोपेश में होने के संकेत मिलते हैं. सरकार की दुविधा ये है कि आखिर इस रकम को वसूला कैसे जाए क्योंकि 12 कंपनियां तो अब इस क्षेत्र में हैं ही नहीं और जो हैं उनमे से अधिकांश की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है.
अगर इस फैसले की वजह से दूरसंचार क्षेत्र पर संकट आया तो असर बैंकों पर भी पड़ेगा. दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों पर कुल मिला कर बैंकों का 90,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कर्ज है. अगर इन कंपनियों को बकाया राशि का भुगतान करना पड़े तो बैंको से लिए गए ऋण को चुकाने की इनकी क्षमता पर असर पड़ेगा.
दूरसंचार मामलों के विशेषज्ञ महेश उप्पल कहते हैं, "ये फैसला दूरसंचार कंपनियों के लिए बर्बाद कर देने वाला एक धक्का है. बकाया राशि पूरे दूरसंचार क्षेत्र की कुल सालाना आमदनी के आधे के बराबर है. ये क्षेत्र अभी 7000 अरब रुपये के कर्ज के बोझ के तले दबा है. ऐसे में अगर क्षेत्र को और नुकसान होता है तो ये सरकार के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं होगी."
उप्पल याद दिलाते हैं कि सरकार लंबे समय से 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी करने की इच्छुक है लेकिन अगर कंपनियों पर नई देनदारी आ जाती है तो 5जी की पूरी प्रक्रिया ही खतरे में पड़ सकती है, जिसका नुकसान सरकारी खजाने और उपभोक्ताओं को भी होगा.
उप्पल ये भी कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने लाइसेंस के नियमों का स्पष्टीकरण दिया है. लाइसेंस अपने आप में ठीक है या नहीं, ये सवाल उठा ही नहीं. मेरा मानना है कि मौजूदा लाइसेंस प्रणाली के तहत एजीआर के आधार पर सरकार को दिए जाने वाले शुल्क का हिसाब लगाना गलत है. ये तरीका लगातार नई तकनीक को लाने वाली और अपना व्यवसाय कुशलता से चलाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन नहीं देता और स्पेक्ट्रम को जाया करने वाली, नई तकनीक न लाने वाली और अपनी आय को भी न बढ़ा पाने वाली कंपनियों को इनाम देता है. समय आ गया है कि हम इस प्रणाली को बदलने के बारे में सोचें."
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