प्रतिबंध के बावजूद गोवा में परोसा जा रहा है मेंढक
३० जुलाई २०१०1985 में भारत सरकार ने इंडियन बुलफ्रॉग, जेरदोन बुलफ्रॉग को संरक्षित प्रजाति घोषित कर दिया क्योंकि इनकी संख्या लगातार गिर रही थी. अब अगर कोई व्यक्ति या रेस्तरां मेंढकों की इस प्रजाति का शिकार करते हुए या इसे मारते हुए, बेचते हुए, परोसते हुए, खाते हुए धरा गया तो सीधे 25हज़ार रुपये के जुर्माना या तीन साल की जेल या फिर दोनों.
लेकिन 1985 में लगाए गए प्रतिबंध को या तो लोग भूल गए हैं, या फिर मेंढकों की इन प्रजातियों कि संख्या इतनी बढ़ गई है कि गोवा में कोई कुछ सौ मेंढकों का शिकार कर ले और खा ले तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.
स्थानीय अधिकारी कोशिश कर रहे हैं कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए. वे लोगों को ध्यान दिलाना चाह रहे हैं कि इस तरह से बदहवास शिकार जारी रहा था तो यहां मच्छर ज्यादा होने से मलेरिया जैसी बीमारियां अचानक बढ़ जाएंगी. मेंढक बरसात में होने वाले कीड़े मकोड़े खाते हैं जिससे कई बीमारियां प्राकृतिक रूप से नहीं फैलती. इसके कारण किसान भी ज्यादा खाद इस्तेमाल करने लगेंगे क्योंकि खेत में होने वाले कीड़े बढ़ जाएंगे. साथ ही सांप भी मेंढक नहीं होने से चूहों की तलाश में रिहायशी इलाकों के नजदीक आएंगे.
प्रकृति के संरक्षण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संगठन की सूची में बुलफ्रॉग और जेरदोन बुलफ्रॉग खतरे में पड़ी प्रजातियों वाली सूची में है. लेकिन इसका कहना है कि फिलहाल इन मेंढकों की संख्या स्थिर है. असली खतरा तब पैदा होता है जब इन मेंढकों का आवास नष्ट हो जाए.
इस साल गोवा राज्य के वन विभाग अधिकारियों ने एक पोचर से 60 मेंढक छुड़ाए. मेंढक का शिकार करने वाले लोग ऑफिसों में काम करते हैं जो दिन भर तो मेज के पीछे बैठे होते हैं लेकिन शाम होते ही वे मेंढकों के शिकार पर निकल पड़ते हैं. बुलफ्रॉग मेंढकों को उनकी मांसल टांगों के कारण खाने में बहुत पसंद किया जाता है और गोवा में ये खास तौर पर खाया जाता है.
बारिश के इस मौसम में जम्पिंग चिकन के नाम से जाने जाने वाले मेंढक की टांगें करी में डाल कर परोसी जाती हैं. 80 से 100 रुपये के बीच इसकी कीमत है. एक रेस्तरां के हवाले से एएफपी समाचार एजेंसी ने लिखा है कि जम्पिंग चिकन मौसमी डिश है, इसलिए लोगों को इसके प्रति आकर्षण रहता है. ये मसालेदार होती है और फेनी के साथ बहुत जायकेदार लगती है.
चूंकि मेंढक परोसना अवैध है, इसलिए जहां ये डिश परोसी जाती है उस रेस्तरां में आने वाले हर अनजान आदमी से उसके बारे में जानकारी उगलवाने की कोशिश की जाती है कि कहीं वन विभाग का कोई अधिकारी, या सरकारी अफसर न हो.
रिपोर्टः एएफपी/आभा एम
संपादनः महेश झा