प्लाज्मा थेरेपी की उपयोगिता पर सवाल
६ अगस्त २०२०नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने एक परीक्षण में पाया है कि प्लाज्मा थेरेपी कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से मृत्यु के जोखिम को कम करने में कारगर नहीं है. इन दिनों संक्रमण से ठीक हो जाने वाले लोगों के शरीर से प्लाज्मा लेकर संक्रमित लोगों के उपचार पर काफी जोर दिया जा रहा है और यह परीक्षण इस तरीके के समर्थकों की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.
एम्स ने कोविड-19 के 15-15 मरीजों के दो समूहों के साथ यह परीक्षण किया. एक समूह को सामान्य उपचार दिया गया और दूसरे को सामान्य उपचार के अलावा प्लाज्मा भी दिया गया. एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया कि दोनों समूहों में मरने वालों की संख्या बराबर रही. उन्होंने यह भी कहा कि दोनों समूहों में मरीजों की हालत में सुधार में भी कोई विशेष अंतर नहीं पाया गया.
संस्थान के दूसरे डॉक्टरों का भी कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी कोई जादुई तरीका नहीं है और जब तक ये पता नहीं चल जाता कि किस-किस तरह के मरीजों पर यह असर करती है, इसका इस्तेमाल बड़े विवेकपूर्ण ढंग से करना होगा. भारत में कोरोना प्रबंधन की नोडल संस्था आईसीएमआर भी प्लाज्मा थेरेपी की क्षमता परखने के लिए परीक्षण कर रही है, लेकिन उसके नतीजे अभी सामने नहीं आए हैं.
दिल्ली के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) के निदेशक एस के सरीन ने मीडिया को बताया कि आईएलबीएस में भी इस पर एक छोटा परीक्षण किया गया था और उसमें भी मृत्यु बचाने संबंधी कोई लाभ सामने नहीं आया. लेकिन उन्होंने कहा कि प्लाज्मा थेरेपी के दो लाभ जरूर नजर आए - मरीजों को सांस संबंधी परेशानियों से थोड़ी राहत मिली और उनके अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि भी कम हो गई.
आईएलबीएस के तहत ही दिल्ली में देश का पहला प्लाज्मा बैंक भी खुला है. इसके लिए कोरोना वायरस से संक्रमित हो कर ठीक होने वाले लोगों को रक्त-दान की तरह प्लाज्मा-दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. दिल्ली सरकार विशेष रूप से प्लाज्मा थेरेपी को ले कर उत्साहित रही है.
विश्व के दूसरे देशों में कोविड-19 के उपचार में प्लाज्मा की उपयोगिता को ठीक से समझने की कोशिशें की जा रही हैं. दुनिया भर में 700 मरीजों से ली गई जानकारी के एक अध्ययन में पाया गया कि इसके उपयोग से कोविड-19 के मरीजों में मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक घटाने में सफलता मिली. लेकिन इस परीक्षण के नतीजों की अभी पीयर समीक्षा नहीं हुई है, इसलिए इसके नतीजों पर अभी पूरी तरह से विश्वास नहीं किया जा सकता.
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