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बीजेपी के गले की फांस बन गया है नागरिकता विधेयक

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ फ़रवरी २०१९

असम में बीते शनिवार प्रधानमंत्री मोदी को इस मुद्दे पर काले झंडे दिखाए गए और "मोदी गो बैक" के नारे लगे. अब भूपेन हजारिका के पुत्र तेज हजारिका ने इस मुद्दे पर भारत रत्न नहीं लेने की बात कही है.

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Indien National Register of Citizens | Protest in Siliguri
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta

तेज हजारिका का कहना है कि मोजूदा हालात में ऐसा करना सही नहीं होगा. उधर, मेघालय की संगमा सरकार ने कहा है कि अगर राज्यसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित हुआ तो वह एनडीए से नाता तोड़ लेगी. असम, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा समेत तमाम राज्यों में इस विधेयक के विरोध में बंद और आंदोलन हो रहे हैं.

चार जनवरी को अपने पिछले असम दौरे के दौरान ही प्रधानमंत्री मोदी ने विधेयक को शीघ्र पारित करने की बात कह कर विवाद पैदा कर दिया था. उसके बाद से ही विरोध प्रदर्शन जारी है. मोदी के दौरे के विरोध में कुछ संगठनों ने शनिवार को 12 घंटे असम बंद भी बुलाया था. इससे राज्य के कुछ हिस्सों में सामान्य जनजीवन प्रभावित रहा. एक महीने के भीतर दोबारा असम दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूर्वोत्तर दौरे के पहले व दूसरे दिन असम की राजधानी गुवाहाटी के अलावा अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर में काले झंडे दिखाए गए.

असम बीजेपी के दो और विधायकों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है. विधायक देवानंद हजारिका कहते हैं, "विदेशी हमेशा विदेशी ही होता है. धर्म के आधार पर किसी विदेशी को नागरिकता नहीं दी जा सकती." वह कहते हैं कि विदेश से आने वाले किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए. हजारिका की दलील है कि अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए राज्य में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपडेट करने की कवायद चल रही है.

ऐसे में उक्त विधेयक की वजह से यह पूरी कवायद ही बेमतलब हो जाएगी. दिसपुर के बीजेपी विधायक अतुल बोरा ने भी विधेयक का विरोध किया है. वह कहते हैं, "मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को इस मामले में मेघालय के मुख्यमंत्री से सबक लेना चाहिए." इससे पहले दो अन्य बीजेपी विधायकों—ऋतुपर्णा बरुआ और पद्म हजारिका ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि इससे असमिया लोगों की अस्मिता व संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी.

दूसरी ओर, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने कहा है कि उक्त विधेयक को राज्यसभा में पेश करने की स्थिति में उनकी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) एनडीए से नाता तोड़ लेगी. ध्यान रहे कि मेघालय सरकार ने ही सबसे पहले उक्त विवादास्पद विधेयक के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में कहा गया था कि उक्त विधेयक स्थानीय लोगों की पहचान, जमीन व मातृभूमि की रक्षा करने के बीजेपी के दावे का विरोधी है. मेघालय में एनपीपी की अगुवाई वाली मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) सरकार में बीजेपी भी शामिल है.

मणिपुर में भी बीजेपी सरकार सत्ता में है. नागरिकता (संशोधन) विधेयक के विरोध में बीते सप्ताह वहां 66 संगठनों की ओर से 24 घंटे की हड़ताल की वजह से राज्य के विभिन्न हिस्सों में सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ. इस दौरान असम व नागालैंड को मणिपुर से जोड़ने वाले दो नेशनल हाइवे पर वाहनों की आवाजाही ठप रही.

राजधानी इंफाल समेत राज्य के कई हिस्सों में उक्त विधेयक के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया गया. इन प्रदर्शनों में महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. विधेयक को तुरंत वापस लेने की मांग में सोमवार को इंफाल में सड़क जाम करने वाली महिलाओं व पुलिस के बीच संघर्ष में कम से कम छह महिलाएं घायल हो गईं. यहां महिला मार्केट की दुकानदारों ने इलाके में धारा 144 लागू होने के बावजूद अपनी मांग के समर्थन में सड़क पर टेंट लगा कर वाहनों की आवाजाही ठप कर दी थी.

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उधर, विधेयक के विरोध में सामाजिक संगठनों की अपील पर दस घंटे नागालैंड बंद की वजह से राज्य मे सोमवार को सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा. बंद की वजह से स्कूल-कॉलेज, बाजार और तमाम दफ्तर बंद रहे. सड़कों पर वाहन भी नजर नहीं आए. तमाम संगठनों ने इस विधेयक के विरोध में आंदोलन तेज करने की धमकी दी है.

राज्य की पीपुल्स डेमोक्रेटिक एलायंस (पीडीए) सरकार में बीजेपी भी साझीदार है. दूसरी ओर, विधेयक के विरोध में मिजोरम के तमाम चर्चों ने शनिवार रात को विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया. प्रमुख चर्चों के नेताओं के संगठन ने तमाम चर्चों से प्रार्थना सभाएं आयोजित करने की अपील की थी ताकि राज्यसभा में उक्त विधेयक पारित नहीं हो सके. अब 16 फरवरी को भी ऐसी प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाएंगी.

प्रधानमंत्री मोदी भी शायद समझ गए हैं कि नागरिकता विधेयक का दांव बेजेपी पर उल्टा पड़ा है. शनिवार को असम की रैली में उन्होंने भरोसा दिलाया कि इस विधेयक से राज्य और इलाके के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पड़ोसी राज्यों से आने वाले अल्पसंख्यकों को शरण देने के लिए कृतसंकल्प है. प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर उक्त विधेयक के मुद्दे पर अफवाह फैलाने का भी आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "इस विधेयक का मकसद नागरिकों के हितों को संरक्षण देना है. लेकिन एसी कमरों में बैठने वाले लोग इस बारे में अफवाह फैला रहे हैं. केंद्र सरकार पूर्वोत्तर की संस्कृति, संसाधनों और भाषाओं को पूरी तरह बचाने के लिए तैयार है."

मोदी ने कहा कि पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यकों को पूरी छानबीन के बाद और संबंधित राज्य सरकारों की सिफारिश पर ही नागरिकता दी जाएगी. उन्होंने कहा, "नागरिकता विधेयक सिर्फ असम या पूर्वोत्तर नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है. लेकिन इससे इलाके के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा."

मोदी और बीजेपी के दूसरे नेता चाहे जितनी सफाई दें, पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों और आम लोगों और सामाजिक संगठनों के रुख को ध्यान में रखते हुए लगता है कि बीजेपी के लिए नागरिकता का दांव भारी साबित हो सकता है. राजनीतिक विश्लेषक हेमेन कलिता कहते हैं, "बीजेपी को शायद उम्मीद नहीं थी कि इस विधेयक का इतने बड़े पैमाने पर विरोध होगा. अब वह इससे होने वाले नुकसान की भरपाई की कवायद में जुटी है. लेकिन फिलहाल उसे इसमें खास कामयाबी मिलती नजर नहीं आती."

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