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भारत और ऑस्ट्रेलिया की परवान चढ़ती दोस्ती

राहुल मिश्र
४ जून २०२०

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन की पहली वर्चुअल शिखर वार्ता सामरिक सहयोग के नजरिए से महत्वपूर्ण है. दोनों देशों के संबंधों के इतिहास में यह बड़ा मील का पत्थर माना जाएगा.

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Indien Australien | Premierminister Narendra Modi und Scott Morrison | Virtuelle Treffen am 04.06.2020
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Press Information Bureau

बैठक तो वर्चुअल थी, लेकिन दोनों प्रधानमंत्रियों की बातचीत में गहरी आत्मीयता की झलक दिखी. मोदी ने मोरिसन को कोविड के बाद भारत यात्रा का निमंत्रण भी दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया. इस साल मोरिसन की यात्रा विभिन्न कारणों से दो बार टल चुकी है. संबंधों में यह पर्सनल टच खास तौर पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मोरिसन की तरफ से दिखा. जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने भारतीय व्यंजनों और मोदी की झप्पी की चर्चा की, उसे सिर्फ क्यूट कहकर दरकिनार नहीं किया जा सकता. इसके पीछे मोरिसन की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की एक गहन समझ भी है. भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही अलग अलग मोर्चों पर चीन के आक्रामक रवैये से परेशान हैं. जहां भारत सीमा पर चीन के अतिक्रमण से जूझ रहा है तो वहीं ऑस्ट्रेलिया पर चीन ने आर्थिक शिकंजा कसना शुरू कर दिया है.

हालांकि दोनों देश इस बात से खुश हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने उन्हें G7 शिखर सम्मेलन में शिरकत के लिए अमेरिका आमंत्रित किया है. ट्रंप और मोदी के बीच हाल में हुई फोन-वार्ता ने भी भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच इस बैठक को और महत्वपूर्ण बना दिया था. तमाम कोशिशों के बावजूद, पिछले कई वर्षों से भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध उतने सुदृढ़ नहीं हो पा रहे थे जितने इन देशों के संबंध जापान और अमेरिका से रहे हैं.

Indien Australien | Premierminister Narendra Modi und Scott Morrison | Virtuelle Treffen am 04.06.2020
शिखर बैठक के दौरान मोदी बोलते हुएतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

क्वाड और इंडो-पैसिफिक सहयोग के नजरिए से भी यह द्विपक्षीय संबंध सबसे कमजोर कड़ी थे. इन आलोचनाओं पर आने वाले कुछ महीनों में संभवतः विराम लग जाएगा जिसकी कई बड़ी वजहें हैं. वार्ता के दौरान भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी के अलावा इंडो-पैसिफिक में समुद्री सहयोग पर भी सहमति की घोषणा भी हुई.

सामरिक सहमति पर पैनापन नहीं

सामरिक तौर पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सहमति पिछले कई दशकों से रही है, लेकिन इसमें वैसी गहराई और पैनापैन नहीं था जैसा इन दोनों ही देशों का जापान के साथ रक्षा और सामरिक संबंधों में है. "पारस्परिक लॉजिस्टिक्स सपोर्ट से संबंधित व्यवस्था” और रक्षा सहयोग के एमओयू से जुड़े रक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग पर अमल से उस दिशा में काफी आगे बढ़ने की आशा है. इससे दोनों देशों की सेनाओं के बीच रक्षा अभ्यास और इंटर-ओपरेबिलिटी बढ़ेगी जो एक बड़ा कदम है. भारत का जापान और अमेरिका से भी इसी तरह का समझौता है. इससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में ऑस्ट्रेलिया भारत की चतुर्देशीय मालाबार युद्ध-अभ्यास का हिस्सा भी बनेगा. पिछले सालों में भारत ऑस्ट्रेलिया की मालाबार में शामिल होने की इच्छा को चीन की वजह से नजरअंदाज करता रहा है.

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ऑस्ट्रेलिया से कोयला लाने की योजना

इस वर्चुअल शिखर बैठक में मसौदों पर वर्चुअल हस्ताक्षर भी हुए. इन मसौदों को एक नजर देख कर ही समझ आ जाता है कि मोदी और मोरिसन ने क्यों इन पर दस्तखत को कोविड महामारी के ठीक होने तक टालना उचित नहीं समझा. साइबर और साइबर-सक्षम क्रिटिकल प्रौद्योगिकी सहयोग पर फ्रेमवर्क समझौते को ही ले लीजिए. इस समझौते की अहमियत सीधे भारत और ऑस्ट्रेलिया की साइबर सुरक्षा और 5G टेक्नोलॉजी के विस्तार से जुड़ी है. 5G टेक्नोलॉजी में चीन की अहम भूमिका है. आज 5G के क्षेत्र में हुआवे और अन्य चीनी कंपनियों ने दो तिहाई से ज्यादा पेटेंट अपने नाम कर रखे हैं. दक्षिण कोरिया की सैमसुंग के अलावा अधिकांश कंपनियां इस क्षेत्र में काफी पीछे हैं. चीनी कंपनियों पर अक्सर आरोप लगते हैं कि वह चीन सरकार से ग्राहकों और देशों के तमाम डेटा साझा करती रही हैं जो अंतर्रराष्ट्रीय नियमों के बिलकुल खिलाफ है. यही वजह है कि अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के कई देश 5G, साइबर सक्षम और साइबर से जुड़ी क्रिटिकल टेकनोलॉजी में चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर चिंतित हैं.

सामरिक खनिजों के खनन पर सहयोग

दोनों देशों ने सामरिक खनिजों के खनन और प्रसंस्करण पर भी एक समझौते को मंजूरी दी है. इसका महत्व भी चीन के संदर्भ में बहुत बढ़ जाता है. चीन ऑस्ट्रेलिया से सामरिक खनिजों का आयात करने वाला सबसे बड़ा देश है. हाल के दिनों में चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक रूप से दंडात्मक कार्रवाई की है. ऑस्ट्रेलिया ने डब्ल्यूएचओ में चीन की इच्छा के विपरीत न सिर्फ कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति की निष्पक्ष जांच की मांग की थी बल्कि ताइवान को डब्ल्यूएचओ में शामिल करने की गुहार भी लगाई थी. ये दोनों बातें चीन को नागवार गुजरीं. सामरिक खनिजों के खनन के मुद्दे पर भारत से समझौता साफ करता है कि ऑस्ट्रेलिया चीन से अपने व्यापार को दूसरी ओर मोड़ कर अपनी निर्भरता को कम करना चाह रहा है. भारत इस क्षेत्र में अच्छा आयातक हो सकता है. इन मसौदों के अलावा लोक प्रशासन और शासन सुधार, व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण, और जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्रों में सहयोग के समझौतों को भी मंजूरी दी गयी.

ICC Cricket World Cup Indien - Australien
क्रिकेट जोड़ता है दोनों देशों कोतस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar

अगर हम इन तमाम संधियों को ध्यान में रखें तो ऐसा लगता है भारत जापान और अमेरिका के साथ संबंधों की तर्ज पर ही ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंध प्रगाढ़ करने की ओर अग्रसर है. और ऐसा हुआ तो चारों देशों के बीच समेकित रूप में क्वाड्रीलेटरल सहयोग भी मूर्त रूप लेगा. चीन को लेकर दोनों देशों की चिंताएं साफ तौर पर मोदी और मोरिसन के वक्तव्यों में दिखीं. दोनों ही नेताओं ने रूल ऑफ लॉ, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में पारदर्शिता और नियमों के पालन पर जोर दिया और साथ ही इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को नियमबद्ध, समावेशी और पारदर्शी बनाने पर जोर दिया. साफ है इशारा चीन की ओर था. चीन इस वर्चुअल बैठक और इसमें तय समझौतों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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