भीमा कोरेगांव मामले पर बुनियादी सवाल
११ फ़रवरी २०२१रोना विल्सन और 15 दूसरे ऐक्टिविस्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में पिछले दो सालों से भी ज्यादा से बिना सुनवाई के जेल में कैद हैं. नई जानकारी के सामने आने के बाद रोना के वकीलों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी दे कर उनकी रिहाई की और नए सिरे से पूरे मामले की जांच की मांग की है. वकीलों ने अपनी याचिका में अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है.
कंपनी ने रोना के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की एक कॉपी का निरीक्षण किया था. निरीक्षण करने के बाद कंपनी ने दावा किया है कि रोना की गिरफ्तारी के करीब 22 महीनों पहले उनके कंप्यूटर में एक मैलवेयर भेज कर उसे हैक कर लिया गया था और फिर धीरे धीरे उनके कंप्यूटर में कम से कम 10 दस्तावेज "प्लांट" किए गए यानी उनकी जानकारी के बिना उनके कंप्यूटर में छिपा दिए गए. कंपनी की रिपोर्ट में मैलवेयर भेजने वाले के बारे में कुछ नहीं कहा गया है.
रोना को गिरफ्तार करने के बाद एनआईए ने उनका कंप्यूटर जब्त कर लिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एजेंसी को उस कंप्यूटर के हार्ड डिस्क की एक कॉपी वकीलों को देनी पड़ी थी. एनआईए का दावा था कि कंप्यूटर से एक चिट्ठी बरामद हुई थी जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या करने की साजिश के बारे में लिखा हुआ था. रोना के वकीलों ने हार्ड डिस्क की वो कॉपी अमेरिका के बार एसोसिएशन को भेजी थी और उसकी फॉरेंसिक जांच करवाने की गुजारिश की थी.
रिहाई की मांग
आर्सेनल के रिपोर्ट इन्हीं कोशिशों का नतीजा है. वकीलों ने अब हाई कोर्ट से अपील की है कि रोना को रिहा किया जाए, उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट को रद्द किया जाए और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की जाए जिसमें डिजिटल फॉरेंसिक के जानकार हों और जिसकी अध्यक्षता हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के कोई सेवानिवृत्त जज करें.
एनआईए ने वॉशिंगटन पोस्ट अखबार से कहा है कि एजेंसी ने भी रोना के कंप्यूटर की फॉरेंसिक जांच करवाई थी लेकिन उसमें किसी भी मैलवेयर के होने की बात सामने नहीं आई थी. एजेंसी ने यह भी कहा है कि डिजिटल सबूतों के अलावा आरोपी ऐक्टिविस्टों के खिलाफ पर्याप्त मौखिक सबूत और दस्तावेज भी हैं.
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