अब मध्य प्रदेश में पुलिस की बर्बरता पर सवाल
१६ जुलाई २०२०पति-पत्नी और उनके बिलखते हुए बच्चों की हालत देख कर किसान के छोटे भाई ने जब हताशा में पुलिसकर्मियों को धक्का दे दिया तो पुलिस ने उसे भी मारा और उस पर जम कर लाठियां भी बरसाईं. उसकी मदद के लिए आगे आई परिवार की एक और महिला भी पुलिस की लाठियों का शिकार हो गई और पुलिस के साथ हाथापाई में उसके कपड़े भी फट गए.
इस पूरे मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद प्रशासन को आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिले के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को उनके पद से हटा दिया, छह आईपीएस अधिकारियों के तबादले के आदेश जारी कर दिए और मामले में उच्च-स्तरीय जांच के आदेश दे दिए.
क्यों मारा पुलिस ने?
बताया जा रहा है कि जिस जमीन पर दलित दंपति खेती कर रहे थे, वह एक सरकारी कॉलेज के निर्माण के लिए चिन्हित थी. कॉलेज का निर्माण करने वाली एजेंसी ने जब प्रशासन को जमीन खाली करवाने को कहा तो वहां पुलिस की एक टीम आ पहुंची. यह दलित दंपति वहां खेत को बंटाई पर ले कर खेती कर रहे थे और वहीं एक छोटी सी झोपड़ी बना कर अपने छह बच्चों के साथ रह रहे थे.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार दंपति ने पुलिस से कहा कि खेतों में फसल खड़ी है, इसलिए उसे नष्ट ना करें और फसल की कटाई के बाद वे जमीन खाली कर देंगे. लेकिन इसके बावजूद पुलिस जब फसल पर जेसीबी चलवाने लगी तब महिला ने भाग कर अपने बच्चों के सामने अपनी झोपड़ी में रखा किसी तरह का जहर खा लिया और उसके बाद उसके पति ने कीटनाशक पी लिया. दोनों बेहोश हो कर गिर पड़े. उनके बच्चे माता-पिता की हालत देख कर रोने लगे. पुलिस ने फिर दोनों को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उनका इलाज चल रहा है. बताया जा रहा है कि दोनों की हालत अब स्थिर है.
पुलिस की बर्बरता
यह मामला तमिलनाडु पुलिस पर लगे हिरासत में दो लोगों की हत्या के आरोपों के कुछ ही दिनों बाद सामने आया है. पुलिस ने दुकानदार पिता-पुत्र को तालाबंदी के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में लिया था और दो दिनों बाद दोनों की हिरासत में मौत हो गई. दोनों के शरीर पर गंभीर चोटों और यौन शोषण के निशान थे. मामले की जांच सीबीआई कर रही है. 10 पुलिसवालों को हिरासत में ले लिया गया है, जिनमें से पांच सीबीआई की हिरासत में हैं.
भारत में पुलिस की बर्बरता एक बड़ी समस्या है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 के बीच पूरे देश में पुलिस की हिरासत में 1,674 लोगों की जान चली गई, यानी औसत पांच जानें हर रोज. हिरासत के बाहर पुलिस द्वारा इस तरह के मार-पीट के मामले आम हैं. जानकार कहते हैं कि पुलिस के इस रवैये की विशेष मार अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, किन्नरों और प्रवासियों पर पड़ती है और यही लोग पुलिस द्वारा हिंसा के सबसे बड़े शिकार बनते हैं.
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह फैसले में पुलिस सुधार के कई निर्देश दिए थे लेकिन उनमें से अधिकतर निर्देशों का पालन अभी तक नहीं हुआ है.
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