मुस्लिमों के खिलाफ अफवाहों का बाजार गर्म
१७ अप्रैल २०२०भास्कर भट्ट दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के भगवती गार्डन एक्सटेंशन इलाके में रहते हैं. गुरूवार 16 अप्रैल को उन्हें मजबूर हो कर उनके एक वृद्ध पड़ोसी को पुलिस बुलाने की धमकी देनी पड़ी. भास्कर का पड़ोसी उनके मोहल्ले में सब्जी बेचने आए सब्जी वाले पर आरोप लगा रहा था कि "वो लोग थूक लगा कर सब्जी बेच रहे हैं." आरोप लगाने के बाद उसने सब्जी वाले से उसका आधार कार्ड मांगा. दरअसल वो जानना यह चाह रहा था कि सब्जी वाला हिन्दू है या मुसलमान.
भास्कर की धमकी पर उसने सब्जी वाले को परेशान करना छोड़ दिया, लेकिन भास्कर कहते हैं कि यह इस बात की गारंटी नहीं है कि वो दोबारा ऐसा नहीं करेगा. पिछले कुछ दिनों में भारत में इस तरह की अफवाहों का बाजार गर्म हो चुका है. वैसे देश में अफवाहों का यह तंत्र कोविड-19 के आने के पहले भी सक्रीय था लेकिन महामारी के फैलने के बाद इसका संकट और गहरा गया है.
आरोप लग रहे हैं कि सांप्रदायिकरण की राजनीति करने वालों को मुसलमानों के खिलाफ अफवाह फैलाने का एक और बहाना मिल गया है और पूर्वाग्रह से ग्रसित आम लोग भी अफवाह में फंस जा रहे हैं. दिल्ली के ही ताजपुर रोड इलाके से पुलिस ने हाल ही में एक व्यक्ति को एक सब्जी वाले को पीटने के आरोप में गिरफ्तार किया था. सब्जी वाला मुस्लिम था और वह व्यक्ति उस पर इसलिए नाराज था क्योंकि उसके अनुसार सब्जी वाले ने उसकी गली में लागू मुस्लिम रेहड़ी वालों के आने पर लगे कथित प्रतिबंध का उल्लंघन किया था.
कई लोग सोशल मीडिया पर खुलेआम घोषणा कर रहे हैं कि वह ऐसा करेंगे और पुलिस को चुनौती भी दे रहे हैं.
पुलिस की सख्ती
कई राज्यों में पुलिस इस तरह की घटनाओं और अफवाह फैलाने की कोशिशों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर रही है. झारखंड पुलिस ने अभी तक इस तरह के 78 केस दर्ज किए हैं, जिनमें 118 लोग आरोपी हैं और कम से कम 60 लोगों को जेल भेजा जा चुका है. झारखंड पुलिस के डीजीपी एम वी राव ने नफरत और अफवाह फैलाने वालों को कड़ी चेतावनी दी है और कहा है कि पकड़े जाने वालों को ना सिर्फ जेल होगी बल्कि उसके बाद उन्हें कहीं कोई नौकरी भी नहीं मिलेगी. राव ने यह भी कहा है कि पुलिस सख्ती से कार्रवाई करेगी और दोषी किस समुदाय का है यह नहीं देखेगी.
झारखंड के गुमला में कुछ दिनों पहले एक अफवाह के फैलने के बाद एक मुस्लिम युवक के साथ मारपीट की गई. युवक को बचा लिया गया लेकिन उसके एक दिन बाद उसी घटना को लेकर मुस्लिम और आदिवासी समुदायों के कुछ लोगों के बीच फिर मारपीट हुई जिसमें एक आदिवासी युवक की जान चली गई और कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए. स्थानीय मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अफवाह उड़ाई गई थी कि कुछ लोग गांव में घुसकर कोरोना वायरस फैला रहे हैं और कुएं में थूक रहे हैं, थूके हुए नोट फेंक रहे हैं और छींक रहे हैं.
मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र पुलिस भी इस तरह के मामलों में सख्ती बरत रही है. सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी और नफरत फैलाने वाली पोस्ट के खिलाफ 218 केस दर्ज किए गए हैं. कुल 24 लोगों को इसके आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है और 160 और लोगों की पहचान कर ली गई है. लेकिन समस्या यह है कि अफवाह फैलाने वाला तंत्र पुलिस से दो कदम आगे है.
व्हाट्सऐप के जरिए मिनटों में किसी भी अफवाह को आसानी से हजारों लोगों के मोबाइल फोन तक पहुंचाया जा सकता है. व्हाट्सऐप ने भी अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए संदेशों को आगे भेजने के नियमों पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं लेकिन ये काफी साबित नहीं हुए हैं. देखना होगा कि पुलिस और प्रशासन अफवाह फैलाने के इस तंत्र को कैसे तोड़ पाते हैं.
खबर भी फेक न्यूज?
फेक न्यूज के इस चक्र का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि सरकार भी कुछ खबरों को भ्रामक बता रही है. पिछले दिनों गुजरात से खबर आई थी कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों को धर्म के आधार पर अलग-अलग वार्डों में रखा गया है. पहले अस्पताल के स्टाफ ने इस खबर की पुष्टि की थी लेकिन अब अस्पताल प्रशासन और गुजरात सरकार ने इस खबर को आधारहीन बताया है.
अस्पताल के सूत्रों से ये खबर आने के बाद ही गुजरात के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने 15 अप्रैल को एक ट्वीट किया, "गुजरात सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने साफ किया है कि सिविल अस्पताल में धर्म के आधार पर कोई वर्गीकरण नहीं किया गया. कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज लक्षणों, तीव्रता और इलाज करने वाले डॉक्टर की सिफारिश के आधार पर किया जा रहा है."
बात स्पष्ट है कि समाज का नुकसान करने वाली अफवाहें तेजी से फैल रही हैं और ऐसे में जरूरत है कि सच और अफवाह के बीच के फर्क को समझा जाए.
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