यूरोपीय सांसदों के कश्मीर दौरे पर हंगामा क्यों है?
२९ अक्टूबर २०१९कश्मीर के दौरे पर जाने से पहले सोमवार को इन यूरोपीय सांसदों ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, कुछ कश्मीरी नेताओं, व्यापारियों और नागरिक समूहों से मुलाकात की.
अगस्त में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद से वहां कई तरह की पाबंदियां लगी हैं. जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र-शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला 31 अक्तूबर की मध्यरात्रि से लागू हो जाएगा. इनमें से एक जम्मू और कश्मीर है और दूसरा लदाख. यूरोपीय सांसदों की यात्रा इसलिए भी संवेदनशील मुद्दा है क्योंकि वे इस बदलाव के ठीक दो दिन पहले कश्मीर जा रहे हैं. ये इन यूरोपीय सांसदों की आधिकारिक यात्रा नहीं है. इस यात्रा का आयोजन एक निजी थिंक टैंक ने किया है.
भारत में विपक्षी पार्टियों ने इस यात्रा का कड़ा विरोध किया और केंद्र सरकार को भी निशाना बनाया है. कश्मीर में धारा 370 खत्म करने के बाद से अभी तक सरकार ने भारतीय सांसदों तक को कश्मीर जाने की इजाजत नहीं दी है. 24 अगस्त को नौ राजनितिक दलों के सांसदों और सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया था लेकिन उन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से भी बाहर निकलने के इजाजत नहीं दी गई और कुछ ही घंटों में उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया गया.
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी को कश्मीर जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अदालत के विशेष आदेश पर उन्हें कश्मीर जाने की अनुमति मिली थी. केंद्र सरकार संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदकों, अमेरिकी सांसदों और विदेशी पत्रकारों को भी कश्मीर जाने से मना कर चुकी है. ऐसे में, यूरोपीय सांसदों को न सिर्फ कश्मीर जाने की अनुमति देना बल्कि उनकी यात्रा को सुगम बनाने की केंद्र सरकार की कोशिशों पर सवाल उठ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ संजय कपूर का कहना है कि ये सांसद आधिकारिक स्तर पर यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "कश्मीरियों के प्रति भारत सरकार के रवैय्ये की पश्चिम में आलोचना बढ़ रही है और इन सांसदों को उसका जवाब देने के लिए बुलाया गया है."
एनसीपी के सांसद मजीद मेमन भी उन विपक्षी नेताओं में से हैं जिन्हें श्रीनगर हवाई-अड्डे से वापस लौटा दिया गया था. वह पूछते हैं कि जब भारत सरकार विदेशी सांसदों को कश्मीर ले जा सकती है तो भारत की संसद के सदस्यों को क्यों रोका गया? मेमन का यह भी कहना है कि यह विदेशी प्रतिनिधि मंडल पहले से जानकारी दे कर कश्मीर जा रहा है, ऐसे में प्रशासन उन्हें वहां बनावटी नजारे दिखाएगा. उन्होंने कहा, "यूरोपीय सांसदों को अगर प्रशासन द्वारा चुने हुए स्थानीय लोगों से मिलाया गया, तो उन्हें जो तस्वीर दिखाई जाएगी वो झूठी होगी."
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कश्मीर के हालात
कश्मीर घाटी में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई नेताओं और हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखा गया है. प्रीपेड मोबाइल सेवाएं और इंटरनेट भी बंद है. बाजारों में भी अधिकतर दुकानें या तो बंद हैं या बस थोड़ी देर के लिए खुलती हैं. स्कूलों और कॉलेजों को खोल तो दिया गया है पर वो खाली पड़े हुए हैं. इसके अलावा आए दिन आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं.
सोमवार को ही बारामूला जिले के सोपोर में चरमपंथियों ने एक बस स्टैंड पर खड़े लोगों पर हथगोला फेंक दिया जिससे 20 लोग घायल हो गए. इसके ठीक दो दिन पहले ऐसा ही हमला श्रीनगर में सुरक्षाबलों की एक टुकड़ी पर किया गया था.
चरमपंथी बार बार कश्मीर से सेब और अन्य सामान बाहर ले जाने वाले ट्रक ड्राइवरों पर भी हमला कर रहे हैं और अभी तक कम से कम चार ट्रक ड्राइवरों को मार दिया है. घाटी के मशहूर सेब बागानों में ही सड़ रहे हैं और उन्हें उगाने वाले किसान और व्यापारी बर्बाद हो रहे हैं.
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कौन हैं ये यूरोपीय सांसद
बताया जाता है कि 27 सांसदों के इस प्रतिनिधिमंडल में कम से कम 22 सांसद यूरोप के अलग अलग देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों के सदस्य हैं. इनमें जर्मनी की पार्टी एफडी के सदस्य बेर्नहार्ड सिम्निओक और लार्स पाट्रिक बैर्ग, फ्रांस की नेशनल रैली पार्टी के छह सदस्य, ब्रिटेन की ब्रेक्सिट पार्टी के चार सदस्य, इटली की अलग अलग पार्टियों के चार सदस्य और पोलैंड की जस्टिस एंड लॉ पार्टी के छह सदस्य शामिल हैं.
भारत में केंद्र में सत्तारूढ़ बीजीपी को भी दक्षिणपंथी ही माना जाता है. विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि बीजेपी अपने ही जैसी विचारधारा वाली यूरोपीय पार्टियों के साथ मिलकर कश्मीर के हालात की झूठी तस्वीर पेश करना चाहती है.
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