लाचार साबित हुई पाकिस्तान सरकार
१० सितम्बर २०१०पाकिस्तान में इतिहास की सबसे भयानक बाढ़ की भीषण त्रासदी के बाद अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि बाढ़ न रोकी जा सकने वाली प्राकृतिक विपदा है या जानबूझकर हुआ अपराध. बहुत से किसानों के सामने ही जमींदारों ने अपने खेतों को बचाने के लिए बाढ़ का रुख उनके खेतों की ओर मोड़ दिया. रविवार को प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक डी वेल्ट अम जोंटाग स्थिति को बयान करते हुए लिखता है
बाढ़ की विभीषिका पाकिस्तान की हकीकत को सामने लाती है. एक अत्यंत भ्रष्ट और निर्मम समाज, एक अत्यंत अक्षम और सरोकारों से बेपरवाह सरकार दिखती है, जब मामला लोगों को न्यूनतम मानव मर्यादा की गारंटी करने का हो. तबाही इतनी व्यापक है कि वह पाकिस्तान को हमेशा के लिए बदल सकती है. चुनी हुई सरकार लाचार साबित हुई. बाढ़ में अपना सब कुछ खो देने वाले लोग उससे नफरत करते हैं. सरकार से उन्हें कुछ नहीं मिला है. पीछे सेना इंतजार कर रही है जिसके अधिकारियों ने दशकों तक देश पर तानाशाही की है. और दक्षिणी हाशिए पर तालिबान और पाकिस्तान के इस्लामी कट्टरपंथी उम्मीद कर रहे हैं कि अब मौका उनके फायदे का है. लोगों की मुश्किल उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकती है. तालिबान ने बाढ़ग्रस्त इलाकों मे 50 हज़ार लड़ाके भर्ती करने की घोषणा की है.
बर्लिन से प्रकाशित वामपंथी दैनिक टात्स की शिकायत है कि पाकिस्तान की विभीषिका में विश्व बहुत कम दिलचस्पी ले रहा है.
यदि यह भयानक बाढ़ पाकिस्तान में नहीं बल्कि भारत में आई होती, तो दुनिया उसकी तरफ देखती. क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक और खुला देश है और पर्यटकों का आकर्षण है. पाकिस्तान भी हालांकि लोकतंत्र है और बाहर से जितना लगता है उससे कहीं अधिक खुला. लेकिन भारत के विपरीत उसके दुनिया में बहुत कम दोस्त हैं और उससे भी कम पर्यटक. इस तरह अलग थलग होना पाकिस्तान के लिए आज महंगा साबित हो रहा है. लेकिन पाकिस्तान को पश्चिमी देशों से और अधिक की उम्मीद है क्योंकि वह इस पक्ष के साथ उससे अधिक निकटता महसूस करता है जितनी यूरोपीय और अमेरिकी सोचते हैं.
अब्दुल सत्तार एधी ने 60 साल पहले एधी फाउंडेशन की स्थापना की थी जो इस बीच गरीबों और कमजोर तबके की मदद करने वाला पाकिस्तान का सबसे बड़ा संगठन बन गया है. पाकिस्तान में जरूरतमंदों को मदद की संरचना में एक और समस्या की ओर इशारा करते हुए ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग लिखता है कि अब एधी फाउंडेशन कट्टरपंथियों के हमले का निशाना बन गया है.
सक्षम सामाजिक कल्याण संरचना से वंचित देश में एधी फाउंडेशन बहुत से गरीबों की मदद करने वाला एकमात्र संस्थान हैं. भारत में जो स्थान मदर टेरेसा को मिला, वह स्थान पाकिस्तान में एधी को दिया जा सकता है. लेकिन उनका काम सबको पसंद नहीं है. इस्लामी संगठनों का आरोप है कि वे कुंवारी मांओं के बच्चों को अपने अस्पतालों या बालगृहों में पनाह देकर शातिरी व्यवहार को प्रोत्साहन देते हैं. एधी जो खुद मुसलमान हैं, कट्टरपंथियों के आरोपों का विरोध करते हैं और कहते हैं उन्हें काल्पनिक दुश्मनों से लड़ने के बदले गरीबों की मदद करनी चाहिए जो सभी धर्मों का मुख्य कर्तव्य है.
क्रिकेट जर्मनी में भले ही न खेला जाता हो फिक्सिंग कांड जर्मन मीडिया में भी सुर्खियों में रहा है. बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेस्श्पीगेल लिखता है कि फिक्सिंग कांड ने पाकिस्तान को हिला दिया है जबकि संकट झेल रहे लोगों को इस खेल से उम्मीद की अपेक्षा थी.
क्रिकेट सिर्फ खेल से कहीं ज्यादा है. यह लगभग एक दूसरा धर्म हैऔर संभवतः एकमात्र साधन जो जाति और धर्म के नाम पर विभाजित मुल्क को साथ रख रहा है. लाखों लोग मैच देखते हैं, झुंड बनाकर टेलिविजन के सामने बैठते हैं, यहां तक कि कुछ पाकिस्तानियों का कहना है कि तालिबान भी अपना फुर्सत का वक्त क्रिकेट के साथ काटते हैं. क्रिकेट के खिलाड़ी आम लोगों के हीरो हैं, लेकिन अब उनके नायक मंच से नीचे गिर गए हैं. और आतंक तथा गरीबी के बाद अब बाढ़ से पीड़ित राष्ट्र गहरे अवसाद में गिर गया है.
और साप्ताहिक पत्रिका डेअ श्पीगेल ने लिखा है
पेशेवर खिलाड़ी कितनी बार खुद को भ्रष्ट होने देते हैं, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है. भूतपूर्व क्रिकेट स्टार सरफराज नवाज कहते हैं कि पिछले ही साल सट्टेबाजी उद्योग के एक व्यापारी ने श्रीलंका दौरे पर एक राष्ट्रीय खिलाड़ी से संपर्क किया था. इन प्रस्तावों को मानने का लोभ बहुत बड़ा होता है, धांधलेबाजी से आसान कमाई हो सकती है. और दुनिया की सर्वश्रेष्ट टीमों के बीच होने वाली सीरीज भी सुरक्षित नहीं लगती. आतंकवाद और बाढ़ दक्षिण एशियाई देश पर भारी पड़ रहा है, अब खेल के नायकों में भरोसा भी समाप्त हो रहा है.
नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की शुरुआत से पहले स्टेडियमों का काम पूरा न होने और भ्रष्टाचार की खबरें आ रही हैं. इनसे जर्मन प्रेस भी अछूता नहीं है. ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग ने लिखा है कि कॉमनवेल्थ खेलों के मद्देनजर निर्माण में खामियां और भ्रष्टाचार भारत की छवि को खतरे में डाल रहे हैं.
स्थिति चिंताजनक है. इस बीच एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली के सिर्फ एक तिहाई लोग मानते हैं कि गेम्स भारत की छवि के लिए लाभदायक होंगे. बहुमत भ्रष्टाचार के आरोपों, बढ़ते खर्चों, सुरक्षा की समस्याओं, चालू निर्माण कार्य और अतिरिक्त जैम पर नाराज है.
फ्रांकफुर्ट अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि उभरते देशों में खेल को अपनी मार्केटिमंग के लिए इस्तेमाल करना फैशन हो गया है. चीन ने 2008 में ओलंपिक खेलों के साथ शुरुआत की, दक्षिण अफ्रीका ने फुटबॉल वर्ल्ड कप का आयोजन किया. इसलिए भारत के लिए कसौटी ऊंची है, काफी ऊंची.
जबकि बीजिंग में सरकारी क्षेत्र ने ओलंपिक खेलों के सुगम आयोजन की गारंटी दी, धरती के सबसे बड़े लोकतंत्र में सरकार के प्रयास विफल रहे हैं. भारत के उत्थान की घोषणा के बदले नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन भ्रष्ट, नौकरशाही और तनावग्रस्त देश की तस्वीर दे रहा है. बड़े प्रायोजकों ने अपने हाथ खींच लिए हैं, पैसे ऐसी कंपनियों की काली पॉकेटों में खो गए हैं जिनका बाद में कुछ पता ही नहीं है. पराकाष्ठा है, खेल के सिलसिले में घुसखोरी. सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग ने कॉमनवेल्थ गेम्स की 16 परियोजनाओं की जांच शुरू कर दी है.
भारत की अर्थव्यवस्था लगभग दो अंकों में बढ़ रही है, लेकिन उसकी वजह से हर जगह मुश्किलें दूर नहीं हो रही हैं. फ्रैंकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि आर्थिक प्रगति के बावजूद एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है
विशेषज्ञों का अनुमान है कि नए रोजगारों के 70 फीसदी अवसर शहरों में पैदा होंगे. ये बात देश के गरीब लोगों को भी मालूम है. इसीलिए वे शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, शहरी आबादी बढ़ रही है. हालांकि इन नए लोगों को नए रोजगार पाने की संभावना सबसे कम होगी, लेकिन उम्मीद अक्सर धोखा देती है.
संकलन: आना लेमन/मझ
संपादन: ए कुमार