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वह दंगा जिसे रोकने के लिए ब्रिटिश सेना का अभियान 38 साल चला

१२ अगस्त २०१९

50 साल पहले ब्रिटिश सेना ने उत्तरी आयरलैंड में अपने कदम रखे थे. कैथोलिक लोगों की प्रिय भूमि तब दंगों से कराह रही थी और इसकी आंच बेलफास्ट और उसके आगे भी चली गई थी.

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Nordirland Unruhen in Londonderry
तस्वीर: Getty Images/AFP

शुरुआत में वहां व्यवस्था बहाल करने के लिए मामूली हस्तक्षेप की योजना थी लेकिन यह अभियान अगले 38 साल तक चला और ब्रिटेन का सबसे लंबा अभियान बन गया.

कैथोलिक समुदाय के लोगों में वोटिंग, घर और नौकरियों में भेदभाव को लेकर भारी गुस्सा था जिसने 1968 के अक्टूबर में उत्तरी आयरलैंड के लंदनडेरी में दंगे का रूप ले लिया. तब कैथोलिक लोगों के बाहुल्य वाला यह अकेला शहर था. तनाव बढ़ता रहा और अगले साल 12 अगस्त को जब प्रोटेस्टेंट समुदाय के लोगों की सालाना मार्च लंदनडेरी के बॉगसाइड से गुजरी तो कैथोलिक लोगों ने उस पर पथराव कर विरोध जताया. इसके बाद अगले तीन दिनों तक पुलिस, प्रोटेस्टेंट उग्रवादी और युवा कैथोलिक लोगों के बीच जम कर संघर्ष हुआ. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और गोलियां भी चलाई लेकिन वे पत्थरों और बोतल बमों से होने वाले हमले को नहीं रोक पाए.

समाचार एजेंसी एएफपी के एक पत्रकार ने 13 अगस्त को लिखा था कि इलाके को देख कर लगता था, "कोई जंग है, पूरे रास्ते पर पत्थर, कांच के टुकड़े और दूसरी हर तरह की चीजें जो फेंक कर मारी जा सकती हैं, वे फैली हुई थीं और हर तरफ आंसू गैस का धुआं फैला था." यह अशांति फैलती ही गई. यहां तक की प्रांतीय राजधानी बेलफास्ट तक जा पहुंची जहां 15 अगस्त को पहली मौत हुई.

Nordirland Unruhen in Londonderry
तस्वीर: Getty Images/AFP

उत्तरी आयरलैंड की सरकार ने 14 अगस्त को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैरॉल्ड विल्सन से मदद मांगी. उसी दिन दोपहर बाद ब्रिटेन के सैनिक लंदनडेरी पहुंच गए. तब समाचार एजेंसी एएफपी ने खबर दी थी, "छह बख्तरबंद गाड़ियां जिनमें चार ब्रिटिश सेना की थीं लंदनडेरी के वाटरलू चौराहे पर पहुंची, वहां दोपहर चार बजे हिंसा शुरू हो गई थी." उस दिन के खत्म होते होते सैनिकों की तादाद करीब 300 थी और उन्होंने बॉगसाइड को घेर कर कांटेदार बाड़ लगा दी थी ताकि कैथोलिक प्रदर्शनकारियों को प्रोटेस्टेंट इलाकों में जाने से रोका जा सके. अगले दिन और ब्रिटिश सैनिक उत्तरी आयरलैंड भेजे गए. बढ़ते बढ़ते सैनिकों की यह तादाद 30,000 तक जा पहुंची.

लंदनडेरी के कैथोलिक समुदाय ने पहले ब्रिटेन की सेना का स्वागत किया और पुलिस की यह कहते हुए आलोचना की कि वे प्रोटेस्टेंट के साथ मिल गए हैं. हालांकि बहुत जल्द ही ब्रिटेन की सेना पर भी भेदभाव के आरोप लगने लगे. इसके अगले साल कैथोलिकों की समर्थक प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी यानी आईआरए ने "द फोर्सेज ऑफ क्राउन(शाही सेना)" के खिलाफ गोलीबारी और बम धमाकों का एक अभियान शुरू किया. आईआरए के उग्रवादियों ने फरवरी 1971 में पहले ब्रिटिश सैनिक की हत्या की और अभियान के खत्म होते होते और 760 ब्रिटिश सैनिक अपनी जान गंवा चुके थे. इसका जवाब प्रोटेस्टेंट अर्धसैनिक गुटों ने दिया. अगले तीन दशक तक इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष चलता रहा. कहते हैं कि इस तनाव ने दोनों समुदायों के बीच हमेशा के लिए कांटे बो दिए.

ब्रिटिश सैनिकों को जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग के लिए हमेशा आलोचना और आरोप झेलनी पड़ी. इसमें सबसे बुरी घटना तब हुई थी जब लंदनडेरी में 20 जनवरी 1972 को सैनिकों ने कैथोलिकों के सिविल राइट्स मार्च पर गोलीबारी शुरू कर दी. इसमें 13 लोगों की तुरंत और एक शख्स की बाद में मौत हो गई. यह मार्च गैरकानूनी था और सैनिकों के पास लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश था लेकिन सैनिकों ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी. लोग वहां से चीखते चिल्लाते भागे. इसके तीन दिन बाद लोगों की भीड़ ने डब्लिन में ब्रिटेन के दूतावास को जला दिया.

मार्च 1972 में ब्रिटेन ने उत्तरी आयरलैंड की प्रांतीय सरकार को निलंबित कर वहां का शासन सीधे अपने हाथ में ले लिया. उस दौरान हुई हिंसा के लिए आधिकारिक तौर पर 2010 में ब्रिटेन ने माफी मांगी. ब्रिटेन के सैनिकों ने आईआरए के लोगों को बड़ी संख्या में मारा. दरअसल आईआरए ने अपना अभियान ब्रिटेन तक पहुंचा दिया था. 1974 में ब्रिटेन के एक पब में घातक हमला हुआ था. इतना ही नहीं 27 अगस्त 1979 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के चचेरे भाई लॉर्ड लुई माउंटबेटन की भी हत्या कर दी गई.

कई सालों तक शांति के लिए कोशिशों का नतीजा 10 अप्रैल 1998 को हुए गुड फ्राइडे एग्रीमेंट के रूप में सामने आया. इसके साथ ही दशकों से चली आ रही उस हिंसा का तांडव रुका जिसमें करीब 3,500 लोगों की जान जा चुकी थी. इसके साथ ही एक अर्धस्वायत्त उत्तरी आयरलैंड का जन्म हुआ और प्रोटेस्टेंट और कैथोलिकों के बीच सत्ता में साझीदारी पर सहमति बनी.

2005 में आईआरए ने बंदूक छोड़ दी और ब्रिटेन ने अपनी सैन्य मौजूदगी कम करनी शुरू कर दी. आखिरकार 31 जुलाई 2007 की मध्यरात्रि को ब्रिटेन का यह मिशन बड़ी सादगी से बिना किसी तामझाम के खामोशी के साथ खत्म हो गया.

एनआर/आरपी(एएफपी)

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