सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता पर उठे सवाल
२८ अप्रैल २०२०रिपब्लिक टीवी के मालिक और सेलिब्रिटी एंकर अर्नब गोस्वामी आजकल सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण में हैं. उनके खिलाफ दायर की गई कई शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए अदालत ने फिलहाल उनके खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई ना करने की हिदायत दी है. लेकिन तालाबंदी के बीच दूसरे कई मामलों को लंबित रख कर जितनी जल्दी उनकी अपील पर सुनवाई हुई उस पर विवाद खड़ा हो गया है.
बुधवार 22 अप्रैल की रात गोस्वामी ने दावा किया था कि उनके घर से थोड़ी ही दूर मोटरसाइकिल सवार दो अंजान लोगों ने उनकी गाड़ी पर हमला किया, गाड़ी के शीशे तोड़ने की कोशिश की और गाड़ी पर कोई लिक्विड फेंका. उनका आरोप है कि हमलावर युवा कांग्रेस के सदस्य थे और उन्हें कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भेजा था.
कथित हमले के कुछ घंटे पहले अर्नब ने अपने रोजाना दिखाए जाने वाले कार्यक्रम में महाराष्ट्र के पालघर में हाल में हुई दो साधुओं और उनके ड्राइवर की लिंचिंग का मामला उठाया था. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में कहा था कि जहां उनकी पार्टी की सरकार है, उस राज्य में साधुओं को पीट पीट कर मारे जाने पर "मन ही मन में खुश हैं." इसके बाद युवा कांग्रेस ने कई राज्यों में अपनी स्थाई इकाइयों के माध्यम से आईपीसी की कई धाराओं के तहत अर्नब के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
किसी को तुरंत सुनवाई, किसी को इंतजार
इसी कार्रवाई से बचने के लिए अर्नब ने अदालत से 23 अप्रैल की शाम आठ बज कर सात मिनट पर अपील की और उनकी अपील पर सुनवाई के लिए अगली सुबह 10.30 बजे का समय दे दिया गया. जब अर्नब की अपील पर सुनवाई की तारीख तय हुई, उस समय अदालत में कई और ऐसी याचिकाएं लंबित थीं जो उस से भी पहले दायर हुई थीं. इनमें से एक थी आईआईएम अहमदाबाद के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जगदीप छोकर की याचिका.
इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि वह तालाबंदी की वजह से देश के कोने कोने में फंसे लाखों प्रवासी श्रमिकों की दशा पर ध्यान दे और केंद्र सरकार को निर्देश दे कि इन श्रमिकों का आवश्यक कोविड-19 टेस्ट कर इन्हें अपने अपने गांव लौट जाने की इजाजत दे. याचिका में अदालत से यह भी अपील की गई है कि वह केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दे कि वह इनके सुरक्षित लौटने की उचित व्यवस्था भी करे.
याचिकाकर्ता प्रोफेसर जगदीप छोकर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि उनकी याचिका 15 अप्रैल को दायर की गई थी और उसके साथ साथ अर्जेंसी या अत्यावश्यकता का अनुरोध भी किया गया था, लेकिन उनकी याचिका को तुरंत सुनवाई नहीं मिली. याचिका पर पहली सुनवाई सोमवार 27 अप्रैल को हुई. छोकर कहते हैं, "यह बड़ा अजीब लगता है कि लाखों प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे की जगह अर्नब गोस्वामी की याचिका को तरजीह दी गई. ऐसा लगता है कि क्या अत्यावश्यक है और क्या नहीं, यह आकलन करने में सुप्रीम कोर्ट एक व्यक्ति के ऊंचे दर्जे से प्रभावित हो गया."
क्या अक्सर हो रहा है पक्षपात?
अर्नब गोस्वामी की याचिका को तरजीह देने के खिलाफ 24 अप्रैल को एक अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को चिट्ठी लिख कर शिकायत की. वकील रीपक कंसल ने आरोप लगाया है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री अकसर मामलों को लिस्ट करने में कुछ विशेष वकीलों और कानूनी फर्मों के साथ पक्षपात करती है. उन्होंने कहा कि कई मामले ऐसे हैं जो 17 अप्रैल को दायर हुए थे लेकिन उन्हें अभी तक लिस्ट नहीं किया गया है.
छोकर के वकील प्रशांत भूषण ने खुद लिखे हुए एक लेख में और गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने एक और याचिका का उदाहरण दिया है जिसके जरिए अदालत से मांग की गई थी कि प्रवासी श्रमिकों को सरकार कम से कम न्यूनतम मजदूरी दे. एक्टिविस्ट हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज की यह याचिका 31 मार्च को दायर की गई थी. तीन अप्रैल को इसकी पहली सुनवाई हुई, सात अप्रैल को दूसरी और 13 को तीसरी.
चौथी सुनवाई 20 अप्रैल को होनी थी लेकिन उस दिन अदालत बैठी ही नहीं, जिसकी वजह से मामला एक नई पीठ के सामने 21 अप्रैल को रखा गया और उस पीठ ने मामला तुरंत ही निपटा दिया, सरकार को "उचित कदम" उठाने की हिदायत के साथ. भूषण ने और भी कई मामलों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट पर सरकार के आगे "घुटने टेक देने" का आरोप लगाया है.
न्यायपालिका द्वारा सरकार के फैसलों के पीछे चलने के आरोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे ने एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में कहा कि महामारी या आपदा का सामना करने के लिए कार्यपालिका ज्यादा सक्षम है. उन्होंने कहा, "संकट के दिनों में सरकार के तीन अंगों को संकट के निबटारे के लिए समन्वय के साथ काम करना चाहिए, धीरज समय की मांग है, सारे देश को धैर्य दिखाना चाहिए."
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की समस्या के हल के लिए सर्वोच्च अदालत ने जो संभव था किया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को प्रवासी मजदूरों वाली याचिका पर अपनी राय देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया है.
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