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असम में हाथियों की जान की दुश्मन बनती बिजली की बाड़

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ दिसम्बर २०२०

पूर्वोत्तर राज्य असम में खासकर नेशनल पार्कों के आस-पास बसी इंसानी बस्तियों में हाथियों के प्रकोप से बचने के लिए बिजली के तारों की जो अवैध बाड़ लगाई गई है अब वही हाथियों की दुश्मन बनती जा रही है.

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उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट नेशनल पार्कतस्वीर: Bildagentur-online/Tips Images/picture alliance

इस सप्ताह मानस नेशनल पार्क के पास बिजली के झटके से एक हाथी की मौत हो गई जबकि वेस्ट कार्बी आंग्लांग जिले में हाई वोल्टेज बिजली के तार नीचे लटके होने की वजह से उसके झटके से दो हाथियों ने दम तोड़ दिया. इससे बिजली के तारों की बाड़ पर सवाल तो उठे ही हैं, असम राज्य बिजली बोर्ड भी कठघरे में है. असम में वर्ष 2011 से अब तक बिजली के झटकों से करीब सौ हाथियों की मौत हो चुकी है. पूरे देश में हर साल औसतन 50 हाथियों की इसी वजह से मौत हो जाती है. असम में हाथियों की आबादी लगातार बढ़ रही है. लेकिन जंगल के सिकुड़ने की वजह से अक्सर उनका झुंड इंसानी बस्तियों में आ जाता है. वन्यजीव विशेषज्ञों ने बिजली के झटकों से हाथियों की मौत की बढ़ती तादाद पर गहरी चिंता जताते हुए इस पर तत्काल अंकुश लगाने की जरुरत बताई है.

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ताजा घटनाएं

निचले असम के चिरांग जिले में बसे मानस नेशनल पार्क में हाथियों की बढ़ती तादाद और पार्क के आस-पास इंसानों की बढ़ती बस्तियों की वजह भोजन की तलाश में हाथियों का झुंड अक्सर जंगल से बाहर आ जाता है. उनके हमलों से बचने के लिए गांव वालों ने अपने घरों के आस-पास अवैध तरीके से बिजली के तारों की बाड़ लगा रखी है. रात को उनमें बिजली प्रवाहित की जाती है. नेशनल पार्क के अधिकारी बाबुल ब्रह्म बताते हैं, "यह घटना कुकलुंग रेंज में हुई. स्थानीय लोगों ने अपने खेतों व घरों के पास बिजली के नंगे तार लगा रखे हैं. उसे पार करते ही बिजली के झटकों से हाथियों की मौत हो जाती है."

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भारत में ट्रेन से टकराकर भी मारे जाते हैं कई हाथीतस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

इसी तरह वेस्ट कार्बी आंग्लागांग जिले के बोगरीहाट गांव में भी उसी दिन बिजली के एक हाई वोल्टेज तार की ऊंचाई कम होने की वजह से दो हाथी उसकी चपेट में आ गए. उनकी मौके पर ही मौत हो गई. गांव वालो का आरोप है कि बार-बार कहने के बावजूद बिजली बोर्ड ने तारों की ऊंचाई नहीं बढ़ाई थी. इससे कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.

असम के वन मंत्री परिमल शुक्लवैद्य बताते हैं, "बीते आठ वर्षो के दौरान इंसानों व हाथियों के संघर्ष में 750 लोगों और ढाई सौ से ज्यादा हाथियो की मौत हो चुकी है. अकेले वर्ष 2019 में राज्य में विभिन्न वजहों से 60 हाथियों की मौत हो गई. इनमें सबसे ज्यादा मौतें बिजली के झटकों से हुई थीं.”इंसान की नीचता ने गर्भवती हथिनी की जान ली

अवैध बाड़ ही समस्या

वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि हाल के वर्षों में हाथियों के बढ़ते हमलों की वजह से ऐसे इलाकों में गांव वालों ने अपने खेतों और घरों के सामने अवैध रूप से बिजली की बाड़ लगा दी है. इनका कनेक्शन भी अवैध रूप से लिया जाता है. इनके संपर्क में आते ही हाथियों की मौत हो जाती है. नियमों के मुताबिक ऐसी बाड़ में कम वोल्टेज वाली बिजली होनी चाहिए. लेकिन लोग अक्सर हाई वोल्टेज बिजली इसमें जोड़ देते हैं. वन विभाग के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "इन बाड़ों का मकसद हाथियों को खदेड़ना होना चाहिए, उनकी मौत नहीं. इनमें सौर ऊर्जा बैटरी के जरिए हल्की बिजली प्रवाहित की जानी चाहिए. हाथियों को भगाने के लिए 10 वोल्ट की बिजली काफी है. लेकिन इन बाड़ों में 220 वोल्ट वाली बिजली का इस्तेमाल किया जाता है जो घातक साबित होती है.”

असम में इंसानों और हाथियों के संघर्ष पर अध्ययन करने वाली संस्था आराण्यक से जुड़ी आलोलिका सिन्हा कहती हैं, "बिजली के तारों की बाड़ में हाई वोल्टेज बिजली का कनेक्शन अवैध है. हमने गांव वालों की संक्रिय भागीदारी से मानस टाइगर रिजर्व के पूर्वी इलाके में 14 किमी लंबी बाड़ लगाई है. वहां एक हजार मकान हैं औऱ सौ से ज्यादा हाथी. लेकिन छह साल में इससे किसी हाथी की मौत नहीं हुई है. इसमें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है. उसके बाद नगांव व बक्सा जिलों में भी ऐसी दो बाड़ लगाई जा चुकी है. इससे 10 हजार लोगों को फायदा हुआ है.” वह बताती हैं कि यह बाड़ इस तरीके से लगाई जाती है कि गांव भी सुरक्षित रहे और हाथियों की आवाजाही का रास्ता भी बाधित नहीं हो.

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हाथियों और इंसानों के बीच बढ़ता जा रहा है टकरावतस्वीर: Reuters/Thomson Reuters Foundation

असम के वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में कोई गिरफ्तारी या सजा नहीं होने की वजह से भी लोगों में अवैध तरीके से बिजली के तारों की बाड़ लगाने की प्रवृति बढ़ रही है. पुलिस व वन विभाग को ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. लेकिन ऐसे मामलों में लापरवाही बरती जाती है. शोणितपुर जिले के मानेरी नेशनल पार्क में वर्ष 2018 में ऐसे ही एक हाई वोल्टेज बिजली वाली बाड़ के संपर्क में आने पर वन विभाग के एक कर्मचारी की मौत हो गई थी. उसके बाद बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाया गया था और एफआईआर दर्ज हुई थी. लेकिन उसके बाद फिर सब कुछ जस का तस हो गया.

गुवाहाटी के मानद वाइल्ड लाइफ वार्डन कौशिक बरुआ कहते हैं, "ऐसे मामलों में सिर्फ गिरफ्तारी या सजा से कोई फायदा नहीं होगा. अगर हाथी किसानों के खेतों को लगातार नष्ट करते रहेंगे तो उनकी ओर से बदले की कार्रवाई तो होगी ही. ऐसे किसानों को मुआवजे का प्रावधान किया जाना चाहिए. इसके साथ ही उनमें जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिए.”

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बिजली विभाग की जिम्मेदारी

बिजली के झटकों से हाथियों की मौत के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार ने बिजली व वन विभाग समेत कई अन्य विभागों के प्रतिनिधियों को लेकर एक कार्य बल का गठन किया था. लेकिन बावजूद इसके ऐसी मौतों पर अंकुश नहीं लग सका है. गुवाहाटी से सटे नारंगी इलाके में भी हाथियों के उपद्रव पर काबू पाने के लिए सेना ने नुकीली बाड़ लगाई है. उससे कई हाथी घायल हो चुके हैं.

ऐसी घटनाओं की तादाद बढ़ने के साथ बिजली विभाग की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि काफी कम ऊंचाई से गुजरने वाले हाई वोल्टेज तारों के झटके से होने वाली मौतों के लिए विभाग ही जिम्मेदार है. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के असम जोन के प्रमुख भास्कर चौधरी कहते हैं, "बिजली विभाग ने बिना किसी योजना के मनमानी तरीके से अवैध बस्तियों तक भी बिजली के तार पहुंचा दिए हैं. इनमें से कई बस्तियां जंगल की जमीन पर कब्जा कर बसी हैं. विभाग को उन तमाम इलाकों का नियमित सर्वेक्षण करना चाहिए.”

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घटते जंगलों में पेट कैसे भरेंगे हाथीतस्वीर: picture-alliance/dpa

वन विभाग के अधिकारी भी बिजली विभाग पर लापरवाही के आरोप लगाते हैं. एक अधिकारी कहते हैं, "बिजली का कनेक्शन देने से पहले विभाग को इस बात की पुख्ता जांच करनी चाहिए कि संबंधित बस्ती कहीं वन विभाग की जमीन पर कब्जा कर तो नहीं बसाई गई है.”

दूसरी ओर, बिजली विभाग के मुख्य महाप्रबंधक संजय कुमार भौमिक कहते हैं, "विभाग नियमित रूप से बिजली के पुराने तारों की जांच करता है. लेकिन अगर कोई अवैध तरीके से बाड़ लगाता है तो वह हमारे नियंत्रण से बाहर है.”

वाइल्ड लाइफ वार्डन बरुआ कहते हैं, "असली समस्या हाथियों के रहने की जगह का लगातार सिकुड़ते रहना है. इस पर अंकुश लगाने की दिशा में तत्काल ठोस कदम उठाना जरूरी है.”

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