जर्मनी की गठबंधन सरकार के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है 2024
३ जनवरी २०२४बीते कई महीनों से जर्मनी की फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) में नाराजगी पनप रही है. जर्मनी की मौजूदा गठबंधन सरकार में एफडीपी सबसे छोटा सहयोगी दल है. 2022 और 2023 में हुए प्रांतीय और स्थानीय चुनावों में एफडीपी को एक के बाद एक कई हार का सामना करना पड़ा.
स्थानीय नेताओं का कहना है कि इसके पीछे केंद्र के गठबंधन सरकार की गड़बड़ियां जिम्मेदार हैं. ओपिनियन पोल्स इशारा करते हैं कि पांच में से एक जर्मन नागरिक ही अब तक सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी), ग्रीन्स और एफडीपी की गठबंधन सरकार के कामकाज से संतुष्ट है. एफडीपी में कई लोग हैं, जिन्हें इस स्थिति से बाहर निकलने का बस यही रास्ता नजर आता है कि उनकी पार्टी गठबंधन सरकार से बाहर निकल जाए.
पार्टी सदस्यों के बीच हाल ही में एक सर्वे हुआ. उम्मीद थी कि यह सर्वे गठबंधन के बाहर निकलने की राह बनाएगा. लेकिन सर्वे में शामिल एफडीपी के 52 फीसदी सदस्यों ने गठबंधन में बने रहने का विकल्प चुना है.
शांति बनाए रखो और आगे बढ़ो?
इस सर्वे के नतीजे से तीनों सत्तारूढ़ दलों के मुख्यालयों में लोगों ने राहत महसूस की होगी. सर्वे के क्रम में हुए मतदान के नतीजे कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं थे. इसके बावजूद अगर बहुमत सदस्य गठबंधन छोड़ने का विकल्प चुनते, तो एफडीपी पार्टी नेतृत्व के लिए इसकी अनदेखी करना मुश्किल होता. ऐसे में गठबंधन सरकार पर दबाव और बढ़ जाता.
भले ही गठबंधन में बने रहने के विकल्प को कम अंतर से जीत मिली, लेकिन वोटों की गिनती के बाद एफडीपी नेतृत्व ने इसे कामयाबी की तरह पेश किया. एफडीपी के महासचिव बिजान जिया जराय ने घोषणा की, "एफडीपी हमारे देश की जिम्मेदारी उठाना चाहती है और इसे आकार देना चाहती है." जराय ने कहा, "पार्टी के सदस्य सरकारी नीतियों पर स्पष्ट उदारवादी छाप देखना चाहते हैं. यह नतीजा देश के सामने मौजूद गंभीर चुनौतियों का सामना करने के हमारे संकल्प को मजबूत करता है."
अप्रूवल रेटिंग्स में गिरावट
असलियत में इस सर्वे के नतीजे से केवल एक अस्थायी बढ़ावा मिलेगा. 2024 में कई चुनाव होने हैं. 9 जून को यूरोपीय संघ का चुनाव है. इनके अलावा सेक्सनी, थूरंजिया और ब्रैंडनबुर्ग में भी चुनाव होना है. 16 में से नौ राज्यों में भी स्थानीय चुनाव होने की उम्मीद है.
सेक्सनी, थूरंजिया और ब्रैंडनबुर्ग में एएफडी अभी सबसे मजबूत पार्टी बनी हुई है. "फेडरल ऑफिस फॉर दी प्रॉटेक्शन ऑफ दी कॉन्स्टिट्यूशन" के वर्गीकरण के मुताबिक, एएफडी दक्षिणपंथी चरमपंथी की श्रेणी में है. एएफडी के आगे केवल सीडीयू ही मुकाबले में दिख रही है. कुछ ओपिनियन पोल्स में एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी की अप्रूवल रेटिंग्स ईकाई संख्या में है.
दिसंबर 2021 में सत्ता संभालने के बाद से संघीय स्तर पर तीनों पार्टियों के जनाधार में काफी कमी आई है. शुरुआत में तो फिर भी 52 फीसदी साझा वोटों के साथ उनके पास बहुमत था, लेकिन अब ओपिनियन पोल्स में उनकी साझा अप्रूवल रेटिंग्स गिरकर 32 फीसदी पर पहुंच गई है.
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने नए साल के अपने संबोधन में स्वीकार किया कि कई लोग असंतुष्ट हैं. उन्होंने कहा, "मैं इसे गंभीरता से लेता हूं." शॉल्त्स ने यह भी कहा कि दुनिया "ज्यादा अस्थिर और मुश्किल" हो गई है और इसमें "तकरीबन असाधारण रफ्तार" से बदलाव हो रहे हैं. शॉल्त्स ने रेखांकित किया कि इन बदलावों के मद्देनजर जर्मनी को भी बदलना होगा.
अलोकप्रिय चांसलर
लेकिन बदलाव ही वो कारण है, जिसकी वजह से लोग संघर्ष कर रहे हैं या गठबंधन सरकार का मुश्किलों से निपटने का तरीका और उसके नतीजे इसकी वजह हैं? जैसे कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उपजा ऊर्जा संकट, आसमान छू रही कीमतें और जर्मन अर्थव्यवस्था में आया ठहराव.
सर्वेक्षणों में चांसलर की निजी अप्रूवल रेटिंग भी लगातार गिर रही है. उनके अपने गैर-दोस्ताना और संक्षिप्त संवाद के तरीके की भी यकीनन इसमें भूमिका है. गठबंधन में गंभीर असहमतियां बनने पर, जैसा कि 2023 में कई बार नजर आया, ओलाफ शॉल्त्स सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखना पसंद करते हैं. वो तभी अपनी बात लेकर सामने आते हैं, जब उन्हें ऐसा करना बेहद अनिवार्य लगता है.
बजट का संकट
मौजूदा गठबंधन सरकार के लिए 2024 शायद सबसे मुश्किल साल रहेगा. तमाम राजनैतिक और विचारधारा संबंधी मतभेदों के अतिरिक्त अब पैसे पर भी विवाद खड़ा हो गया है. इस गठबंधन सरकार में एक पार्टी आर्थिक तौर पर उदारवादी विचारधारा की है और दो पार्टियां लेफ्ट झुकाव वाली हैं. एसपीडी और ग्रीन्स मजबूत सरकार के पक्षधर हैं. दोनों दल सामाजिक कल्याण और जलवायु सुरक्षा के मद में ज्यादा फंड चाहते हैं. एफडीपी की राय अलग है. निजी तौर पर जिम्मेदारी उठाने और स्टेट के स्तर पर कम खर्च करने पर उसका जोर है.
इन असहमतियों को पाटने के लिए 2021 में ओलाफ शॉल्त्स, जो कि उस समय वित्तमंत्री थे, एक तरकीब लाए. इसके तहत 2021 में कोविड-19 के दौरान संसद द्वारा मंजूर किए गए क्रेडिट्स में से वो हिस्सा जो इस्तेमाल नहीं हुआ था, उसे सरकार के विशेष फंड में स्थांतरित किया जाना था. प्रस्तावित बजट में एसपीडी और ग्रीन्स की राजनीतिक योजनाओं के लिए पर्याप्त फंडिंग थी, वहीं एफडीपी के सदस्य और वित्तमंत्री क्रिस्टियान लिंडनर बिना कोई नया कर्ज लिए सामान्य संघीय बजट पेश कर पाए.
यह इंतजाम करीब दो साल चला. फिर नवंबर 2023 में फेडरल कॉन्स्टिट्यूशन कोर्ट ने महामारी से जुड़े फंड को किसी अन्य मद में इस्तेमाल किए जाने को असंवैधानिक माना. इस फैसले के कारण सरकार के आगे बजट का संकट खड़ा हो गया. अब अपने बाकी बचे कार्यकाल में सरकार को बचत करनी पड़ेगी. अभी से ही नजर आ रहा है कि फंड को लेकर दरार और गहरी होगी.
कौन से खर्चे जरूरी हैं?
एसपीडी के पार्टी सम्मेलन में ओलाफ शॉल्त्स ने कहा कि अगर "बाकी रास्ते कमजोर होते हैं," तो जर्मनी को यूक्रेन के लिए और पैसा मुहैया कराना होगा. यह संकेत 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा है. शॉल्त्स ने कहा कि इस संबंध में जर्मनी को फैसला लेना होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जरूरत पड़ने पर "जर्मनी ऐसा कर पाने की स्थिति में हो."
चांसलर स्पष्ट तौर पर डेट ब्रेक (कर्ज लेने की सीमा) के संदर्भ में यह बात कह रहे थे. जर्मनी की संवैधानिक व्यवस्था में शामिल डेट ब्रेक का प्रावधान है. शॉल्त्स ने वित्तमंत्री लिंडनर को राजी कर लिया है कि अगर यूक्रेन के लिए सैन्य और वित्तीय सहायता बढ़ाने की जरूरत पड़ती है, तो वो इस साल भी डेट ब्रेक स्थगित करने पर विचार करेंगे.
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि एफडीपी भी इसके लिए मान जाएगी. एफडीपी सदस्यों के बीच हुए सर्वे के मुताबिक, 48 फीसदी प्रतिभागी गठबंधन से बाहर निकलना चाहते हैं. यह संख्या बढ़ सकती है. हालांकि पार्टी के नेताओं को दरार पड़ने की आशंका से सबसे ज्यादा डर है. नए चुनाव होने की स्थिति में ना केवल उनके हाथ से सत्ता निकल सकती है, बल्कि उनके सांसदों को जर्मन संसद बुंडेस्टाग में भी अपनी सीट छोड़नी पड़ सकती है.
यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व के स्तर पर हर कोई गठबंधन को जारी रखने की कोशिश में जुटा है. शायद राजनीति में चलन से बाहर हो जाने का डर ही है, जो 2024 में गठबंधन सहयोगियों को साथ जोड़कर रखेगा.