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मतभेद भूल पाकिस्तान की मदद करे अमेरिकाः रिपोर्ट

५ अक्टूबर २०२२

एक अध्ययन में सिफारिश की गई है कि अमेरिका को पाकिस्तान की मदद करनी चाहिए ताकि उसकी चीन पर निर्भरता ना बढ़े. यह अध्ययन कुछ विशेषज्ञों ने स्वतंत्र रूप से किया है और इसमें अमेरिकी सरकार शामिल नहीं थी.

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परेशान पाकिस्तान
परेशान पाकिस्तानतस्वीर: picture alliance/dpa/AP

मंगलवार को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की वॉशिंगटन यात्रा से ठीक पहले यह अध्ययन जारी किया गया. एक हफ्ता पहले ही देश के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी अमेरिका के दौरे पर थे. इस अध्ययन को करने वालों में पाकिस्तान में अमेरिका के राजदूत रहे रयान क्रॉकर, कैमरन मंटर और रॉबिन राफेल शामिल थे. इसके अलावा पाकिस्तान के पूर्व अमेरिकी राजदूत हुसैन हक्कानी भी इस समूह का हिस्सा थे.

शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान साझीदारों की तरह साथ-साथ काम करते रहे हैं. अफगानिस्तान में अमेरिका की सेना के अभियानों में भी पाकिस्तान ने उसका खूब साथ दिया. लेकिन अमेरिकी अधिकारियों को संदेह था कि पाकिस्तान गुपचुप तरीके से तालिबान की मदद करता रहा. ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में पाए जाने के बाद से दोनों देशों के रिश्ते लगातार खराब होते चले गए. पिछले साल तालिबान ने अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा कर लिया.

अपने अध्ययन में विशेषज्ञों ने इस बात का विशेष तौर पर उल्लेख करते हुए सिफारिश की है कि दोनों मुल्कों को मतभेद भुलाकर साथ आना चाहिए.

रिपोर्ट कहती है, "मौजूदा मतभेदों को साझीदारी पर हावी होने देने के बजाय, शायद यह समय है कि दोनों एक दूसरे के हितों को समझें ताकि वे साझा चिंताओं पर मिलकर काम करने का रास्ता खोज सकें.” रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका को पाकिस्तान में मदद का इस्तेमाल वहां की नीतियां बदलने की रणनीति के रूप में करने से बचना चाहिए क्योंकि यह रणनीति विफल साबित हुई है.

बदले में, पाकिस्तान को यह बात स्वीकार करने की सलाह दी गई है कि उसकी सारी समस्याएं, खासकर आतंकवाद और उग्रवाद अमेरिका के मत्थे नहीं मढ़ी जा सकतीं.

चीन के नजरिये से ना देखे अमेरिका

जैसे-जैसे अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते खराब हुए, चीन का प्रभाव इस दक्षिण एशियाई गरीब मुल्क पर लगातार बढ़ता गया है. अमेरिका में इस बात को लेकर चिंता है कि चीन पाकिस्तान को कर्ज के बोझ से लाद देगा.

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अपने अध्ययन में इन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जैसे पहले अमेरिका पाकिस्तान को अफगानिस्तान या भारत के साथ रिश्तों के संदर्भ में देखता रहा है, वैसा ही अब चीन के मामले में ना करे और पाकिस्तान को चीन के नजरिये से ना देखे.

रिपोर्ट कहती है कि इसके बजाय अमेरिका को चीनी कर्जों के प्रति "पारदर्शिता और अनूरूपता की क्षमता तैयार करने में पाकिस्तान की मदद करनी चाहिए” और अमेरिकी कंपनियों और अन्यों को भी वहां निवेश के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उसकी चीन पर निर्भरता कम हो सके.

दोनों के हित साझे हैं

रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन के प्रति क्षमता बढ़ाने में भी ध्यान दे सकता है, जो पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती है. पाकिस्तान हाल ही में एक भयानक बाढ़ से गुजरा है.दशकों में आई सबसे भयंकर बाढ़ ने देश के एक तिहाई हिस्से को तहस-नहस कर दिया है और गंभीर आर्थिक संकट में झोंक दिया है.

 

रिपोर्ट कहती है कि भले ही अमेरिका अब अफगानिस्तान से पीछे हटना चाहता है लेकिन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का सहयोग उसकी जरूरत बना रहेगा क्योंकि अब जमीनी जानकारियों के लिए अब उसका अपना नेटवर्क मौजूद नहीं है.

रिपोर्ट कहती है, "वैसे बात अफगानिस्तान की हो, चीन की अथवा भारत की, पाकिस्तान और अमेरिका की राय अक्सर एक जैसी नहीं होती, लेकिन इस क्षेत्र में स्थिरता, अतिवाद की समस्या के खिलाफ जंग और युद्ध टालने की कोशिश में दोनों के हित साझे हैं.”

वीके/एए (एएफपी)

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