चीन से तनाव के बीच ताइवान भारत में खोलेगा तीसरा 'दफ्तर'
६ जुलाई २०२३"एक-चीन" नीतिके तहत भारत ने ताइवान को अलग देश की मान्यता नहीं दी है और इसी वजह से उसके साथ औपचारिक रूप से कूटनीतिक रिश्ते नहीं बनाये हैं. लेकिन दिल्ली और मुंबई में लंबे समय से ताइवान के 'ताइपेई इकनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर' चल रहे हैं.
एक ताजा घोषणा में ताइवान ने कहा है कि अब वो ऐसा ही एक 'दफ्तर' मुंबई में भी खोलेगा. ऐसा पहला दफ्तर ताइवान ने 1955 में दिल्ली में खोला था, जो डी-फैक्टो रूप से भारत में ताइवान के दूतावास के रूप में काम करता है.
महत्वपूर्ण फैसला
दूसरा दफ्तर ताइवान ने 2012 में चेन्नई में खोला था, जो वाणिज्य दूतावास की तरह काम करता है. ताइवान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि मुंबई केंद्र दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश के अवसरों के विस्तार में मदद करेगा.
यह केंद्र महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव के व्यापारियों, पर्यटकों और ताइवान के नागरिकों को वीजा सेवायें और अन्य मदद मुहैया कराएगा.
इसके अलावा यह ताइवान की 'न्यू साउथबाउंड पॉलिसी' के तहत विज्ञान और तकनीक, शिक्षा, सांस्कृतिक सहयोग और आदान-प्रदान और ताइवान और पश्चिमी भारत के बीच पीपल-टू-पीपल रिश्तों को भी बढ़ाने का काम करेगा.
दिल्ली के बाद चेन्नई में इस तरह के केंद्र को खोलने के मुख्य उद्देश्यों में तमिलनाडु में अपनी फैक्ट्रियां चला रही ताइवानी कंपनियां की सुविधा सुनिश्चित करना था. ताइवान के विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत में मौजूद ताइवानी कंपनियों में से 60 प्रतिशत दक्षिण भारत में काम कर रही हैं.
भारत में ताइवानी पदचिन्ह
मुंबई केंद्र खोलने की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब कई ताइवानी कंपनियां भारत में अपने सामान के उत्पादन के अवसर तलाश रही हैं. भारत में 100 से भी ज्यादा ताइवानी कंपनियां मौजूद हैं, जिनमें एप्पल के आईफोन की असेंबली करने वाली कंपनियां फॉक्सकॉन और पेगाट्रोन भी शामिल हैं.
फॉक्सकॉन ने भारत के वेदांता समूह के साथ मिलकर भारत में सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने की एक बड़ी फैक्ट्री लगाने की भी घोषणा की है. ताइवानी कंपनियों के उत्पादन अड्डे पारंपरिक रूप से चीन में रहे हैं लेकिन अब कई कारणों से यह कंपनियां भारत को अपना वैकल्पिक केंद्र बनाना चाह रही हैं.
इन कारणों में प्रमुख हैं चीन में कोविड-19 महामारी और तालाबंदी की वजह से बार बार फैक्ट्रियों के बंद हो जाने से उन्हें हुआ नुकसान और ताइवान की संप्रुभता को चीन से उभरता हुआ खतरा.