जापोरिझियाः यूक्रेन में आईएईए का मिशन क्या है?
३० अगस्त २०२२14 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का समूह दक्षिणी यूक्रेन के जापोरिझिया के दौरे पर है. दल का नेतृत्व कर रहे हैं राफाएल ग्रोसी जो कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए के प्रमुख हैं. परमाणु ऊर्जा के विशेषज्ञों का यह दल इस उम्मीद के साथ वहां पहुंचा है ताकि वहां के जमीनी हालात देख सके. साथ ही उनका मकसद है कि अगर यूरोप के इस सबसे बड़े परमाणु संयंत्र को कोई नुकसान पहुंचा हो तो उसका जायजा लें और वहां काम करने वाले यूक्रेनी स्टाफ से मिल कर उनका हाल जानें.
जापोरिझिया पर छह महीने पहले रूस के युद्ध छेड़ने के कुछ हफ्तों बाद से ही रूसी सेना का कब्जा है. जुलाई से इस परमाणु संयंत्र के परिसर के पास कई बार गोलीबारी हो चुकी है. इस जगह पर हमले करने का आरोप दोनों ही देश एक दूसरे पर मढ़ते आए हैं और किसी ने भी इसे स्वीकार नहीं किया है.
एक हफ्ते पहले ऐसा पहली बार हुआ जब प्लांट का नेशनल पावर सप्लाई से संपर्क कट गया क्योंकि रास्ते में कहीं बिजली का तार कट गया. आईएईए के इस दौरे से यहां तनाव कुछ कम होने, दोनों ओर की सेनाओं के अपनी कार्रवाई यहां से दूर ले जाने की उम्मीदें बढ़ी हैं. आशा यह भी है कि इसके बाद प्लांट में फंसे यूक्रेनी स्टाफ को भी वहां से निकालने का रास्ता खुलेगा.
क्या आईएईए टीम को पूरी तस्वीर दिखेगी?
यह पक्के तौर पर कहना कठिन है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इंस्पेक्टरों को तना तो दिखाया जाएगा कि प्लांट की सुरक्षा के कैसे इंतजाम हैं.
सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए क्या करना होगा?
प्लांट और उसके पास के इलाके में हर तरह की सैन्य गतिविधियां बंद करना, वहां काम करने वाले लोगों को प्लांट के हर हिस्से में आजादी से आने जाने देना, स्पेयर पार्ट्स मुहैया कराना जरूरी होगा जिससे समय पर उसकी मरम्मत हो सके.
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सेनामुक्त इलाका बनाए जाने की कितनी संभावना है?
अभी तो काफी कम संभावना है. रूस के पास ऐसी तकनीकी और ऑपरेशनल विशेषज्ञता है कि वह न्यूक्लियर प्लांट का करीब 38 फीसदी हिस्सा खुद ही चलाता है. साइट पर बड़ी दुर्घटना होने की काफी प्रबल आशंका होने के बावजूद रूस ने वहां इतने महीनों से कब्जा किया हुआ है. इसके पहले रूस से की गई तमाम अंतरराष्ट्रीय अपीलों में से एक भी अब तक सफल नहीं हुई है.
क्या सारे रिएक्टरों को बंद कर देना है उपाय?
इससे बड़ी दुर्घटना होने की संभावना तो जरूर कम होगी लेकिन इसका फैसला वहां जमीनी हालात देखने के बाद ही लिया जा सकता है और वो भी फौरन नहीं. शटडाउन के बाद भी प्लांट को ठंडे होने तक काफी ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी.. यहां मौजूद छह रिएक्टर अगर ठंडे ना हुए तो पिघलने का खतरा रहेगा. शटडाउन के कुछ दिन बाद जब रिएक्टर ठंडे हो जाएं तब असल में परमाणु दुर्घटना का खतरा कम होगा.