शव के साथ बलात्कार की सजा के लिए कानून की जरूरत
२ जून २०२३मामला 21 साल की एक लड़की के बलात्कार और हत्या का था. आरोप था कि व्यक्ति ने पहले उस लड़की की हत्या की और फिर उसके शव के साथ बलात्कार किया. निचली अदालत द्वारा दोनों अपराधों का दोषी पाए गए व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की थी. हाई कोर्ट ने हत्या के लिए उस व्यक्ति को दी गई आजीवन कारावास की सजा को तो सही ठहराया लेकिन उसे बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया.
अदालत का कहना था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में शव के साथ बलात्कार की सजा देने के लिए कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए मुलजिम को इस अपराध की सजा नहीं दी जा सकती. लेकिन अदालत ने इस फैसले के साथ की इस विषय की गंभीरता को रेखांकित किया.
अदालत ने कहा कि शव के साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स आईपीसी की धारा 377 में दी गई "अप्राकृतिक अपराध" की परिभाषा के तहत आता है, लेकिन इसके लिए सजा देना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से "शव" का जिक्र नहीं है.
स्थिति कितनी चिंताजनक है, यह दर्शाते हुए अदालत ने यह भी कहा, "ऐसे अधिकांश सरकारी और निजी अस्पताल जहां शवों को रखा जाता है, वहां शवों की रखवाली करने के लिए नियुक्त किये गए गार्ड अक्सर युवा महिलाओं के शवों के साथ लैंगिक संबंध बनाते हैं."
लेकिन, अदालत ने आगे कहा, दुर्भाग्य से शवों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए और उनके खिलाफ अपराध रोकने के लिए भारत में कोई कानून नहीं है. इसलिए अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि वो या तो धारा 377 में संशोधन कर उसमें "पुरुष, महिला या पशु के शव" को शामिल करे या इसके लिए अलग से नया प्रावधान लाये.
अदालत ने जानकारी दी कि ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इस तरह के विशेष कानूनी प्रावधान मौजूद हैं. इसके अलावा अदालत ने कर्नाटक सरकार से कहा कि वो सुनिश्चित करे कि छह महीनों के अंदर सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के मुर्दाघरों में सीसीटीवी लगाए जाएं ताकि शवों के खिलाफ अपराध रोके जा सकें.
शवों की तरफ लैंगिक आकर्षण महसूस करने को नेक्रोफिलिया कहा जाता है. शवों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं लेकिन इनके बारे में ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. इस तरह के मामलों में अभी तक धारा 377 के अलावा 297 के तहत भी सजा दी जाती रही है. धारा 297 शवों को दफनाने के स्थानों पर अनाधिकार प्रवेश से संबंधित है.
लेकिन जैसा की अदालत ने बताया कई देशों में इस तरह के अपराधों के लिए विशेष रूप से प्रावधान है, जिनकी मदद ले कर भारत में भी नया कानून बनाया जा सकता है. सरकार ने अभी तक अदालत की अनुशंसा पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है.