क्या भारत की न्याय व्यवस्था का अमीरों के प्रति झुकाव है?
७ मई २०२०भारतीय न्याय व्यवस्था में भी कई त्रुटियां हैं लेकिन ऐसा कम ही होता है कि ऐसा कहने वाली कोई आवाज व्यवस्था के अंदर से आए. बुधवार छह मई को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने वर्चुअल विदाई समारोह का इस्तेमाल भारत की न्याय व्यवस्था की कमियों पर और उन्हें दूर करने के उपायों पर चर्चा शुरू करने के लिए किया. जस्टिस गुप्ता ने न्यायपालिका की चार दशक से भी ज्यादा सेवा की और इस दौरान बतौर जज उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए.
लेकिन अपने विदाई भाषण में उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताने के साथ भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर अपनी समीक्षा भी साझा की. जस्टिस गुप्ता के अनुसार देश का कानून और कानूनी प्रणाली अमीर और ताकतवर लोगों की तरफ झुके हुए हैं. उनका कहना है कि कोई अमीर और ताकतवर व्यक्ति अगर सलाखों के पीछे होता है तो वो कभी ना कभी अपने मामले में सुनवाई को प्राथमिकता दिलवा ही लेता है और अगर वो बेल पर होता है तो वो सुनवाई को लटकता चला जाता है.
उन्होंने कहा कि इसका खामियाजा गरीब वादी को उठाना पड़ता है क्योंकि वो इन अदालतों पर दबाव नहीं डलवा सकता और उसकी सुनवाई आगे खिसक जाती है. उन्होंने कहा कि अमीर और गरीब के इस संघर्ष में न्याय के तराजू के पलड़ों का हमेशा वंचितों की तरफ झुकाव होना चाहिए, तभी पलड़े बराबर हो पाएंगे. जस्टिस गुप्ता की इस बात को काफी सराहा गया है.
'क्लास कैरेक्टर'
नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के वाइस चांसलर प्रोफेसर फैजान मुस्तफा का कहना है कि ये सच है कि हमारे कानूनों में एक 'क्लास कैरेक्टर' है और वो निरपवाद रूप से अमीरों का पक्ष लेते हैं. प्रोफेसर मुस्तफा ने डीडब्ल्यू से कहा, "उदाहरण के तौर पर उस नियम को लीजिए जिसके तहत एक आरोपी को जमानत के तौर पर "श्योरटी का बॉन्ड" भरना पड़ता है. कभी एक हजार रुपये का बॉन्ड लाना होता है तो कभी एक लाख का. एक गरीब आदमी बॉन्ड कैसे लाएगा?"
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने जस्टिस गुप्ता की सराहना करते हुए ट्विटर पर लिखा कि वो एक ऐसे जज थे जिन्होंने संविधान और लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का वचन निभाया और बिना किसी पक्षपात और बिना किसी डर के न्याय किया.
अधिवक्ता करुणा नंदी ने जस्टिस गुप्ता के उस फैसले को याद किया जिसके तहत उन्होंने नाबालिगों के साथ किए गए मैरिटल रेप को गैर कानूनी ठहराया था.
लेकिन यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि जस्टिस गुप्ता की बातों के बाद देश की न्याय प्रणाली में कोई बदलाव आएगा या नहीं. प्रोफेसर मुस्तफा ने भी कहा कि भाषणों में इस तरह की बातें कहने के साथ साथ बेहतर यह होगा कि देश के जज अपने फैसलों में भी ये बातें लिखें ताकि ये रिकॉर्ड पर आ सकें. उन्होंने इस बात पर ध्यान दिलाया कि हाल ही में किस तरह प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत की मांग करने वाली याचिका को कई दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तारीख ही नहीं मिली.
सेलिब्रिटी टीवी न्यूज एंकर अर्नब गोस्वामी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में 23 अप्रैल की शाम आठ बज कर सात मिनट पर दायर की गई थी और उनकी अपील पर सुनवाई के लिए अगली ही सुबह 10.30 बजे का समय दे दिया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट से प्रवासी श्रमिकों के लिए मदद मांगने वाली एक याचिका जो 15 अप्रैल को दायर की गई थी उस पर पहली सुनवाई 27 अप्रैल को हुई.
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