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कानून और न्याय

गुजरात: धर्म-परिवर्तन कानून पर विवाद

२७ अगस्त २०२१

गुजरात में धर्म-परिवर्तन रोकने के लिए लाए गए नए कानून के मूल प्रावधानों पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक को हटाने से इनकार कर दिया गया है. गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट की रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की है.

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तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance

गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की अधिसूचना गुजरात सरकार ने जून में जारी की थी. इसके तहत 2003 के मूल कानून में कई संशोधन किए गए थे. जमीयत उलामा-ए-हिंद की गुजरात इकाई और मुजाहिद नफीस नाम के एक गुजराती नागरिक ने नए कानून के खिलाफ हाई कोर्ट में अलग अलग याचिकाएं दर्ज की थीं.

उनका कहना था कि नए कानून के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं. मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने 19 अगस्त को नए कानून की धारा तीन, चार, चार ए, चार बी, चार सी, पांच, छह और छह ए पर रोक लगा दी थी. अदालत का कहना था कि बिना किसी जबरदस्ती, लालची या धोखे से किए गए अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने के लिए इन प्रावधानों पर रोक लगाना जरूरी है.

धर्म-परिवर्तन के लिए इजाजत

इनमें सबसे ज्यादा विवाद धारा पांच पर है. इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक पुजारी को किसी का धर्म परिवर्तन कराने से पहले जिला मैजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी. धर्म परिवर्तित करने वाले को भी जिला मैजिस्ट्रेट को इस बारे में एक तय फॉर्म में इसकी जानकारी देनी होगी.

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अदालत का कहना है कि अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाना जरूरी हैतस्वीर: Aletta Andre

इसी धारा पर लगाई लगी रोक को हटाने के लिए गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट से अपील की थी लेकिन कोर्ट ने अपील खारिज कर दी. इसके बाद राज्य सरकार में गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने एक बयान में कहा कि नए "लव जिहाद विरोधी कानून" के रूप में "एक ऐसा हथियार लाया गया था जो हमारी बेटियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाली जिहादी ताकतों को नष्ट कर देगा."

जडेजा ने कहा कि धारा पांच नए कानून का सार है और उसे बचाने के लिए राज्य सरकार हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. इसके पहले अदालत में सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने कहा था धारा पांच में अंतर-धार्मिक विवाहों का जिक्र ही नहीं है और वो सिर्फ धर्म-परिवर्तन के लिए अनुमति से संबंधित है, चाहे वो शादी के पहले जो, बाद में हो या बिना शादी के हो.

अंतर-धार्मिक विवाह का सवाल

उन्होंने कहा कि इस धारा पर रोक लगा देने से कोई भी धर्म-परिवर्तन से पहले सरकार से अनुमति लेगा ही नहीं, जिसका मतलब है कि एक तरह से पूरे कानून पर ही रोक लग गई है. अदालत का कहना था कि यह अदालत के आदेश को लेकर सरकार की व्याख्या है और अदालत ने अनुमति से संबंधित सिर्फ इसी नहीं बल्कि सभी धाराओं पर रोक लगाई है.

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने कहा, "अगर किसी कुंवारे व्यक्ति को धर्म बदलना है तो उसे अनुमति लेनी पड़ेगी. हमने इस पर रोक नहीं लगाई है. हमने सिर्फ विवाह के जरिए धर्म-परिवर्तन वाली धारा पर रोक लगाई है. हमने आदेश में यही कहा है."

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