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जापान की रक्षा नीति अब किस ओर जाएगी

राहुल मिश्र
१६ जुलाई २०२१

चीन और अमेरिका की तनातनी के बीच जापान ताइवान और दक्षिण कोरिया लेकर चिंतित है साथ ही भारत के प्रति उत्सुक और आशावान भी. देश की रक्षा नीतियों का जो खाका तैयार हुआ है उससे तो यही पता चल रहा है.

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Japan Maritime Self Defense Forces
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Kitamura

रोचक लेआउट और चमक-धमक के साथ जापान का साल 2021 का रक्षा श्वेत पत्र आ गया है. विशेषज्ञों के बीच इस रक्षा श्वेत पत्र के आवरण पृष्ठ को लेकर ही काफी मंथन चल रहा है. जापान का यह रक्षा श्वेत पत्र मंगलवार को प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा की संस्तुति के बाद औपचारिक तौर पर जारी हुआ. एक काल्पनिक घुड़सवार समुराई योद्धा के चित्र से सजा आवरण पृष्ठ जापान के बदलते तेवर की ओर इशारा करता है. इसके अलावा भी इस रक्षा श्वेत पत्र में कई और बातें है जो इसे महत्वपूर्ण बनाती हैं.

एशिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति होने के नाते जापान के इस सालाना जारी होने वाले रक्षा श्वेत पत्र का खास सामरिक महत्त्व है जिससे जापान की सामरिक चिंताओं, इसकी तैयारियों और भविष्य की सामरिक रणनीतियों का भी पता चलता है. जापान के श्वेत पत्र में कई महत्वपूर्ण बिंदु उभर कर आये हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव. जापान और एशिया के तमाम देशों के लिए अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती तनातनी चिंता का सबब बन रही है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि श्वेत पत्र में भी जापान ने इस सामरिक संकट को पहले से कहीं बड़ा माना है.

 Japans weibliche Seglerinnen an vorderster Front der Geschlechtergleichstellung
तस्वीर: Reuters/K. Kyung-Hoon

वैसे तो जापान चीन और अमेरिका की सामरिक तनातनी से तो वाकिफ है और शायद इससे जुड़ी परिस्थतियों के लिए कमोबेश तैयार भी है लेकिन जापान की श्वेत पत्र में उल्लिखित चिंता इस वजह से ही नहीं है. उसे डर है कि अमेरिका और चीन के बीच घमासान, आर्थिक और 5जी तकनीक, साइबर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स जैसे तकनीकी मुद्दों पर ज्यादा होगी. जापान और इंडो-पैसिफिक के तमाम देशों पर इसका सीधा असर होगा इस बात में भी कोई दो राय नहीं है. 5जी, साइबर सुरक्षा और रीजनल सप्लाई चेन को लेकर बढ़ती उठापटक से यह रुझान साफ दिख रहे हैं.

ताइवान पर बदला रुख

जापानी श्वेत पत्र की एक और खास बात है ताइवान को लेकर जापान सरकार की चिंताएं. ऐसा पहली बार हुआ है कि जापान ने अपने रक्षा श्वेत पत्र में मुखर होकर ताइवान की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर चिंताओं को स्पष्ट रूप से सामने रखा है. प्रपत्र में यह साफ तौर पर लिखा है कि चीन का बार-बार ताइवान की संप्रभु हवाई सीमा में जानबूझ कर अतिक्रमण चिंता का विषय है. इसी के चलते जापान को ताइवान और उसके आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा को लेकर चौकन्ना रहना होगा. यह जापान की खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है.

ताइवान और जापान के बीच की दूरी लगभग 2100 किलोमीटर की है. यह एक बड़ी वजह है जिसके चलते जापान ताइवान की सुरक्षा से खुद को सीधे जोड़ कर देखता है. खास तौर पर जापान का सामरिक नजरिये से महत्वपूर्ण - ओकिनावा द्वीप, ताइवान पर हुए किसी झगड़े में बेवजह लपेटे में आ सकता है. हालांकि यह बात सिर्फ हवाई है और चीन फिलहाल ऐसा करने का इच्छुक नहीं दिखता लेकिन तारो आसो के इस बयान से चीन में खलबली मच गयी. चीन ने इस वक्तव्य पर कड़ा ऐतराज जताया और यह भी कहा कि ऐसे वक्तव्यों से चीन और जापान के कूटनीतिक संबंधों की बुनियाद पर चोट होती है. हालांकि तारो आसो की यह बात हवाई नहीं थी और जापान इस मसले पर पूरी गंभीरता से काम कर रहा है - यह अपने रक्षा श्वेत पत्र के जरिये जापान ने साफ कर दिया है.

Japan US Premierminister Yoshihide Suga
जापान के प्रधानमंत्री तस्वीर: Sadayuki Goto/AP/picture alliance

‘वन चाइना नीति' के तहत चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है. हालांकि कम्युनिस्ट चीन के जन्म के समय से ही जमीनी हकीकत यही है कि ताइवान का अपना अलग अस्तित्व रहा है. बावजूद इसके चीन ने ताइवान को मेनलैंड चीन में मिला लेने की कसम खा रखी है. माना जाता है कि चीनी सरकार की रणनीति यही है कि 2049 में जब चीन अपनी सौवीं वर्षगांठ मना रहा हो, तब तक ताइवान भी मेनलैंड चीन का हिस्सा बन जाय. इसी रणनीति के तहत चीन ने ताइवान मुद्दे को अपने ‘कोर इंटरेस्ट' की संज्ञा दी है.   

2013 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन का ताइवान को लेकर रुख और कड़ा हो गया है. पिछले कुछ महीनों में चीन के आक्रामक रवैये में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है. ताइवान की सम्प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की जिम्मेदारी उठाए अमेरिका ने भी इस मोर्चे पर चीन के हर कदम का डट कर जवाब दिया है. साथ ही ताइवान की सैन्य और सामरिक दोनों ही मोर्चों पर मदद में भी कोई कमी नहीं रख छोड़ी है.

अमेरिका और चीन की के बीच बरसों से चली आ रही इस खींचतान में अब परिवर्तन आ रहे हैं जिनमें से एक बड़ा बदलाव है ताइवान को लेकर जापान का बदलता रूख. पड़ोस में बसे ताइवान को लेकर पिछले कुछ महीनों में जापान पहले से कहीं ज्यादा गंभीर हो रहा है. इसकी एक झलक कुछ ही हफ्ते पहले तब देखने को मिली जब जापान के उप प्रधानमंत्री तारो आसो ने कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में जापानी सेना को अमेरिका की मदद करनी चाहिए.

Taiwan | Kuang Hua VI
ताइवानी नौसेना का पोततस्वीर: Sam Yeh/AFP/Getty Images

दक्षिण पूर्व सागर को लेकर भी श्वेत पत्र में चिंताएं जताई गई हैं. जापान का मानना है कि तेजी से दक्षिण चीन सागर में हथियारों की होड़ और द्वीपों का सैन्यीकरण चिंता का विषय है. हालांकि चीन, ताइवान, और इस क्षेत्र के मसले ही जापान की चिंता का सबब नहीं हैं. जापान की एक बड़ी चिंता इस जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े संकटों को लेकर भी है. पिछले कुछ वर्षों में जापान जलवायु परिवर्तन की वजह से आई आपदाओं की मार से बहुत परेशान है. इन आपदाओं से निपटने में मानवीय तकनीक बहुत कारगर नहीं सिद्ध हो रही है यही वजह है कि जापान ने इन मुद्दों को भी अपने रक्षा श्वेत पत्र में जगह दी है.

कोरियाई देशों का जिक्र

सुरक्षा चिंताओं की फेरहिस्त में जापान ने उत्तर कोरिया का भी जिक्र किया है. उसका मानना है कि उत्तरी कोरिया की मिसाइल डिफेंस क्षमताओं में बढ़ोत्तरी चिंता का विषय है. श्वेत पत्र में यह भी कहा गया है कि उत्तरी कोरिया के पास पहले से ही यह क्षमता मौजूद है कि वह जापान पर मिसाइलों से हमला कर दे.

अपने श्वेत पत्र में उत्तर कोरिया के साथ ही दक्षिण कोरिया को भी जापान ने लपेट लिया है. जापान और दक्षिण कोरिया के बीच स्थित दोकडो/ताकेशिमा द्वीप का भी जिक्र किया है और इसे अपना बताया है. जाहिर है इस कदम से दक्षिण कोरिया में नाराजगी है. दक्षिण कोरिया सरकार ने जापान की इस हरकत को तथ्यविहीन और भड़काऊ माना है. दक्षिण कोरिया ने चेतावनी दी है कि वह जापान की ऐसी किसी भी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देगा. इस सिलसिले में दक्षिण कोरियाई विदेश मंत्रालय ने जापानी दूतावास के अधिकारी को भी तलब कर लिया.

इस श्वेत पत्र में भारत को ही काफी तरजीह दी गई है. फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक, क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग और भारत-आस्ट्रेलिया- जापान सामरिक और सैन्य सहयोग - सभी में भारत को एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार सहयोगी माना है. कुलमिलाकर जापान का यह नया रक्षा श्वेत पत्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की तेजी से बदली सामरिक परिस्थितियों का आकलन है - इन तमाम मुद्दों को जापान कैसे देखता है इसका श्वेत पत्र की मदद से एक और सटीक आंकलन करने में जानकारों को और मदद मिलेगी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)

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