पूरा भारत मैदान पर उतर आया
१५ अक्टूबर २०१०उद्घाटन समारोह में अगर एयरोस्टेट (हवा में लटके गुब्बारे) ने लुभाया था, तो गुरुवार को हुए समारोह में अनूठे लेजर शो ने दिल को छू लिया. ढोल-नगाड़ों की थाप और जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बैठे दर्शकों की तालियां एक साथ बजकर सातों सुरों की सरगम बन गई. यह समारोह भारतीय खिलाड़ियों के अभूतपूर्व प्रदर्शन का जश्न भी हो गया. समारोह ने पूरे भारतवर्ष को जैसे एक सांस्कृतिक मंच प्रदान कर दिया.
कहीं केरल का कलारीपयट्टू मार्शल आर्ट था, तो कहीं नगालैंड के लोक कलाकार अपनी पुरानी जड़ों को पल्लवित करते नजर आए. मणिपुर का थंग ता और पंजाब का मटका इसमें शामिल था. तलवारबाजी बेशक कॉमनवेल्थ गेम्स का हिस्सा न हो, लेकिन कलाकारों ने विभिन्न मार्शल आर्ट के जरिए इसका जोरदार प्रदर्शन किया. मिलिट्री बैंड की धुनों पर दर्शकों में देश भक्ति का जज्बा हिलोरे मारने लगा.
"कदम-कदम बढ़ाए जा" और "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" खासतौर पर फिजा में पूरी तरह गूंज उठे. बाद में सुखविंदर के "चक दे इंडिया" और "वंदे मातरम" गीत ने देशभक्ति के रंग को और भी गहरा कर दिया. विभिन्ना रंगों की रंगोली ने विविधता में एकता का संदेश दिया.
उसके बाद शुरू हुआ खेलों में हिस्सेदारी करने वाले 71 देशों के खिलाड़ियों का कारवां जो ऐसा चल रहा था मानो कोई बल खाती दरिया बह रही हो. कॉमनवेल्थ गेम्स के झंडे तले सब एक हो गए. पिछले 11 दिनों की मैदान की प्रतिस्पर्धा जैसे कहीं गुम हो गई. खेलों के शुभंकर शेरा ने मशहूर गायक शान के साथ ओपन ऑटो में प्रवेश किया. शान के विदाई गीत ने भावनाओं को झंकृत कर दिया.
स्टेडियम का जब वे चक्कर लगा रहे थे तो दर्शकों ने भी उन्हें भरे मन से हाथ हिलाकर बाय-बाय किया. समारोह में तौफीक कुरैशी का संगीत, निलाद्री का सितार, विक्रम घोष का तबला और सारंगी पर साबरी ने भी कमाल दिखाया. अंत में अगले मेजबान स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो को ध्वज प्रदान किया गया. लगभग 350 बैंडपाइपर्स ने आकर्षक वेशभूषा के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
बैगपाइपर्स की अगुवाई जोनाथन ग्राहम कर रहे थे. ग्लासगो के खूबसूरत ऑडिटोरियम व अन्य दर्शनीय स्थलों की झांकी पेश की गई. स्कॉटलैंड ने अपनी सांस्कृतिक खूबसूरती और समृद्धि को अच्छे ढंग से झलकाया. दिल्ली को बाय-बाय कह ग्लासगो का न्योता दिया. पदक पालिका में बेशक भारतीय खेमा ऑस्ट्रेलिया से पीछे दूसरे स्थान पर रहा, लेकिन मेजबानी में दिल्ली ने मेलबोर्न में पिछले खेलों को कहीं पीछे छोड़ दिया.
खास झलकियां
कॉमनवेल्थ गेम्स के शुभारंभ समारोह में जहां खिलाड़ियों के मार्चपास्ट के दौरान भारत का तिरंगा अभिनव बिंद्रा के हाथ में था, वहीं इस बार तिरंगे को एक अन्य शूटर गगन नारंग ने थामा. नारंग इन गेम्स में भारत के हीरो साबित हुए, उन्होंने 4 स्वर्ण पदक हासिल किए.
मार्शल आर्ट की प्रस्तुति के दौरान लेजर शो तथा आतिशबाजी के प्रदर्शन ने दर्शकों का मन मोह लिया.
स्कूली बच्चों द्वारा दी गई "वंदे मातरम" की प्रस्तुति सबसे ज्यादा दिलकश रही. इनके द्वारा पूरे मैदान में तिरंगा बनाया जाना आकर्षण का केंद्र रहा. उधर ऊपर एयरोस्टेट गुब्बारे में राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत सीन दिखाए जा रहे थे.
रेलगाड़ी के रूप में दिल्ली 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स के मार्शल (वॉलेंटियर्स) ने स्टेडियम में प्रवेश किया. दिल्ली यूनाइटेड के ये वे वॉलेंटियर्स थे जिनके अथक परिश्रम के बिना ये गेम्स सफलतापूर्वक संपन्ना नहीं हो सकते थे.
इसके बाद स्टेडियम में प्रवेश किया कॉमनवेल्थ गेम्स में प्रतिभागी 71 देशों के ध्वजों तथा खिलाड़ियों ने.
शुभारंभ समारोह में जहां भारत की सांस्कृतिक विरासत को पेश किया गया था, वहीं समापन समारोह में उत्सवी माहौल था. गेम्स जबर्दस्त सफल रहे थे इसलिए हर तरह खुशनुमा माहौल था और कार्यक्रम भी मस्ती भरा था.
जैसे ही भारतीय खिलाड़ियों ने स्टेडियम में प्रवेश किया, पूरा स्टेडियम गुंजायमान हो गया. अधिकांश भारतीय खिलाड़ियों ने अपने हाथ में राष्ट्रीय ध्वज संभाल रखे थे.
सौजन्यः नईदुनिया
संपादनः ए कुमार