कश्मीर गए यूरोपीय सांसदों ने क्या देखा?
३० अक्टूबर २०१९जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद पहली बार किसी विदेशी प्रतिनिधिमंडल ने राज्य का दौरा किया है. प्रतिनिधिमंडल में यूरोपीय संसद के 28 सांसद हैं. ज्यादातर सांसद यूरोपीय देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों के हैं लेकिन तीन सांसद उदार वामपंथी दलों से भी हैं. इन सांसदों ने कड़ी सुरक्षा के बीच श्रीनगर का दौरा किया, डल झील में शिकारे की सवारी की, भारतीय अधिकारियों से मिले और कुछ ऐसी जगहों पर भी गए जहां हिरासत में लिए गए लोगों को रखा गया है.
बहुत से लोग आरोप लगा रहे हैं कि इन सांसदों ने जम्मू कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों या फिर नागरिक समुदाय के लोगों से मुलाकात नहीं की. हालांकि हाल ही में चुने गए स्थानीय पंचायतों के सदस्यों और अध्यक्षों से इन सांसदों की मुलाकात कराई गई.
बाद में इन सांसदों ने मीडिया से बात की. हालांकि इसमें चुनिंदा मीडिया संस्थानों को ही आने की इजाजत मिली. खासतौर से कश्मीर के स्थानीय मीडिया संस्थानों को इसमें आने की अनुमति नहीं मिली. सांसदों के प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि वे जम्मू और कश्मीर में "आतंकवाद को खत्म करने के भारत के प्रयासों का पूरा समर्थन करते हैं." उन्होंने यह भी कहा कि वे भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने नहीं आए हैं.
प्रतिनिधिमंडल में शामिल फ्रांस के हेनरी मालोसे ने कहा कि कश्मीर समस्या आतंकवाद से जुड़ी है जिसे पड़ोसी देश पाकिस्तान हवा दे रहा है. उन्होंने मजदूरों की हत्या की निंदा भी की. मालोसे ने कहा, "कश्मीर की सारी समस्याएं आतंकवाद से जुड़ी हैं. हम यहां पर्यटन, कृषि, उद्योग और दस्तकारी के विकास की संभावना देख रहे हैं जिसे आतंकवाद ने रोक रखा है. हम चाहेंगे कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय साथ मिल कर आतंकवाद के खिलाफ काम करे."
यूरोपीय सांसदों के इस दौरे की भारत के विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि जब सरकार ने भारतीय संसद के सदस्यों के वहां जाने पर दो महीने से रोक लगा रखी है तो विदेशी सांसदों को वहां क्यों जाने दिया जा रहा है.
कश्मीर गए यूरोपीय सांसदों में चार ने इस यात्रा से खुद को अलग कर लिया और कहा कि वह "भारत सरकार की पीआर एक्सरसाइज में" शामिल नहीं होना चाहते. जिस वक्त सांसद कश्मीर के दौरे पर थे, वहां दुकानें पूरी तरह बंद थीं और सड़कों पर सन्नाटा पसरा था. इस बीच आतंकवादियों के हमले में कम से कम पांच गैरकश्मीरी मजदूरों की मौत हो गई है. ये सभी मजदूर पश्चिम बंगाल राज्य के थे.
राज्य में भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद विरोध प्रदर्शनों में तेजी आई है और आतंकवादी हमलों में कम से कम आधा दर्जन लोगों की जान गई है. स्कूल कॉलेज खाली हैं और ज्यादातर दुकानें, रेस्तरां और होटल बंद हैं. मंगलवार को आतंकवादी हमलों में मजदूरों की मौत के बारे में अधिकारियों का कहना है कि बाहरी लोगों में डर पैदा करने के उद्देश्य से इस तरह के हमले किए जा रहे हैं. इस बीच भारत सरकार राज्य को दो हिस्सों में बांटने के अपने फैसले पर आगे बढ़ने की तैयारी में जुटी है. गुरुवार को इसकी औपचारिक शुरूआत हो जाएगी.
नए केंद्रशासित राज्य
गुरुवार को गुजरात के पूर्व नौकरशाह जी सी मुर्मु को जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में शपथ दिलाई जाएगी. एक और पूर्व नौकरशाह राधा कृष्ण माथुर लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर पद की शपथ लेंगे. मुख्य रूप से पहाड़ी इलाके वाले लद्दाख में बौद्ध लोगों का बोलबाला है. यह इलाका लंबे समय से खुद को जम्मू कश्मीर से अलग करने की मांग करता रहा है. लद्दाख के लोगों का कहना है कि कश्मीर की अशांति के चक्कर में इस इलाके के विकास का पहिया थम गया है. मोदी सरकार लद्दाख में पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास को तेज करना चाहती है. चट्टानी पथारों और बर्फ से ढंकी चोटियों वाला लद्दाख चीन के साथ सीमा विवाद की चपेट में भी है. चीन इसके एक हिस्से पर अपना दावा करता है.
हिंदू बहुल जम्मू इलाके में केंद्र सरकार का कामकाज आसानी से और तेजी से आगे बढ़ने की उम्मीद की जा रही है. इस इलाके का विकास भी कश्मीर की अशांति के कारण बाधित रहा है लेकिन इसमें अब तेजी आने की उम्मीद है. भारत सरकार का मानना है कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीन अलग अलग हिस्से हैं. इसमें कश्मीर के कुछ जिले ही आतंकवाद से प्रभावित है, ऐसे में बाकी हिस्सों को क्यों इसकी चपेट में आने दिया जाए.
एनआर/एके(रॉयटर्स, आईएनएस,डीपीए)
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