क्या भविष्य है किसान आंदोलन का
२३ दिसम्बर २०२०दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक महीन से धरने पर बैठे किसानों ने आपस में मंत्रणा कर सरकार से एक बार फिर बातचीत करने का फैसला किया है. मीडिया में आई खबरों के अनुसार किसान संघों ने फैसला किया है कि वो 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस के मौके पर सरकार को आधिकारिक रूप से पत्र लिखकर कहेंगे कि वो बातचीत फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं.
इसके पहले सरकार के मंत्रियों और किसान संघों के बीच वार्ता के कई दौर हो चुके हैं, लेकिन इनमें दोनों पक्ष किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाए थे. सरकार ने नए कृषि कानूनों में कुछ संशोधन करने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन किसानों की मांग है कि तीनों कानून वापस लिए जाएं. अभी भी किसानों का कहना है कि वो कृषि में धीरे-धीरे सुधार लाने के लिए तैयार हैं बशर्ते सरकार इन कानूनों को वापस ले ले.
हालांकि इसके बावजूद गतिरोध के अंत की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है, क्योंकि दोनों पक्ष अपनी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंगलवार 22 दिसंबर को पत्रकारों के एक समूह से कहा कि जब भी किसी बड़े सुधार की शुरुआत की जाती है तो शुरू में उसका मजाक उड़ाया जाता है, फिर उसका विरोध किया जाता है और अंत में उसे मान लिया जाता है. उन्होंने कहा कि देश भी इस समय ऐसी ही स्थिति से गुजर रहा है.
उनके इस बयान को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है और किसानों को अपनी यह मांग छोड़नी ही पड़ेगी. कृषि मंत्री ने ट्वीट भी किया कि वो मंगलवार को कुछ ऐसे किसान संघों के प्रतिनिधियों से मिले जिन्होंने नए कृषि कानूनों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया और सरकार से कहा कि उन्हें वापस नहीं लिया जाना चाहिए.
देखना होगा कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत दोबारा शुरू हो पाती है या नहीं. इस बीच किसानों ने आम लोगों से अपील की है कि अगर वो उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं तो किसान दिवस के दिन वे एक समय का भोजन त्याग कर उपवास करें.
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